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________________ ३९२ : जैनसाहित्यका इतिहास गोम्मटेश्वरका अर्थ किया है-गोम्मट अर्थात् चामुण्डरायका देवता। उसीके कारण विन्ध्यगिरि, जिसपर गोम्मटेश्वरको मूर्ति स्थित है, 'गोम्मट' कहा गया। इसी गोम्मट उपनामधारी चामुण्डरायके लिये नेमिचन्द्राचायने अपने गोम्मटसार नामक सग्रह ग्रन्थको रचना की थी। इसीसे इस ग्रन्थको गोम्मटसार संज्ञा दी गई। जीवकाण्डकी मन्दप्रवोधिनी टीकाकी उत्थानिकामे अभयचन्द्र सूरिने लिखा है कि गगवश के ललामभूत श्रीमद्राजमल्लदेवके महामात्य पद पर विराजमान, और रण रगमल्ल, असहाय पराक्रम, गुणरत्न भूपण, सम्यक्त्व रत्न निलय आदि विविध सार्थक नामधारी श्री चामुण्डरायके प्रश्नके अनुरुप जीवस्थान नामक प्रथम खण्डके अर्थका संग्रह करनेके लिये गोम्मटसार नाम वाले पञ्चसग्रह शास्त्रका प्रारम्भ करते हुए नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती परम मगल पूर्वक गाथासूत्र कहते है।' अत श्री नेमिचन्द्राचार्यने चामुण्डरायके लिये, जिनका नाम गोम्मटराय भी था, यह ग्रन्थ रचा था । इसीसे उन्होने इस ग्रन्थको 'गोम्मट' नाम दिया। जैसे शाकटायनने अपने शाकटायन व्याकरण पर रचित वृत्तिको राजा अमोघ वर्पके नामपर अमोघवृत्ति नाम दिया था। नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसारके सिवाय दो ग्रन्थ और भी रचे है उनमेंसे एक है लब्धिसार और दूसरा है त्रिलोकसार । त्रिलोकसारकी संस्कृत टीका १ 'श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासन-गुहाभ्यन्तर-निवासि-प्रवादि-मदाध-सिंधुर सिंहायमान-सिंहनन्दिमुनीन्द्राभिनन्दितगगवशललामराज-सर्वज्ञायनेकगुणनामधेय-भागवेय-श्रीमद्राजमल्लदेव-महीवल्लभ-महामात्यपदविराजमान रणरगमल्लसहायापराक्रम-गुणरत्नभूपण-सम्यक्त्व-रलनिलयादिविविध गुणनामसमासादितकीर्तिकात-श्रीचामुण्डराय-भव्य-पुण्डरीक-द्रव्यानुयोगप्रश्नानुरुप महाकर्मप्रकृतिप्राभतप्रथमसिद्धान्तजीव स्थानाख्य-प्रथम-खंडार्थ सग्रह-गोम्मटसारनामधेय-पञ्चसग्रह शास्त्रप्रारभमाण समस्तसैद्धान्तिकचूडामणि श्रीमन्नेमिचन्द्र-सैद्धान्तिकचक्रवर्ती तद्गोम्मटसारप्रथमावयवभूतं जीवकाण्ड विरचयन् ।' -जी० का० म० पृ० टी०, पृ० ३ । सिद्धान्तामृतसागर स्वमतिमन्यक्ष्माभृदालोड्य मध्ये, लेभेऽभीष्ट फलप्रदानपि सदा देगीगणाग्नेसर । श्रीमद् गोमट-लब्धिसार-विलमत् त्रैलोक्यसाराम रखमाजश्रीसुरवेनुचिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रो मुनि ॥६॥ बाहु० च० ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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