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________________ ३७६ : जेनसाहित्यका तिहारा १२४ मे १३८ मा तागे गणंग । ५गी तरह प्रा०प०ग० में मानगागंणा गपंग लग गागागोग ग० १०० मे १५ योगी गगगगे शामिभाव और उगा मागियोका भी गायन पिया जो गलग नही। सेनामोका नर्णन ग ग गिरनार में है । ७ गम्गावগাগা গা গম লা লিগা না fলা শাখা । इगर प्रा० 00 नगे जगणं या जिम्नासे करार है। जागं अमिr पंग में भी ये गा गगन जो नागने निगमम्मो पि , पागे माने : गजीवसमाग प्रारणा नगंग अगितगति १९३-२०२ नोक । मानमार्गणाका कपन, मेगा मान तथा गम्गारमार्गणा करन।। प्रा० १०० ग गागा १११२८ नाग इतना ही गहा है कि गंनिपर्नेन्द्रिय पर्गाप्पा मालागि प्राप्ति होनेपर गम्गावग्रहणी गोग्ग होता है । ने गा राग पासो लगिया न्याय ग्तिाग्गे रहा है। अमितगतिने गी गतागंगानिकका अनुकरण करने हुए और भी अधिक विरतारगे उगन कयन पिया है। तया गम्मावानीनों भेदीप और उनके सम्बन्धमें विशेष बातें भी या अनुकरण गरते हुए नही है। फिर भी अगिनगतिने इन प्रथम प्रशारणमें दो कपन ऐगे किये है जो उइटाके पं० ग० में भी नही है तो उन्होंने ३६३ मतोल उपपत्तिपूर्वक कयन किया है जो गोम्पटमार गर्ग णी प्रतीत होता है। दुगरे, नौदह गुणरथानोंमें जीवाशी माया स्यन रिया है। यह गायन गोगटगार जीवकाण्ड (गा० ६२२६३२) गे अनुरूप है। दुगरे, प्रतिगमकीर्तनमें मलकी तरह ही आठ कमों की प्रकृतियोका कथन है। तोगरे कर्मग्नयमें गुणम्यानोगं गर्मप्रतिकि वन्य उदय और मत्वका विवेचन मूल की तरह ही प्राय है। प्रात पञ्चमग्रहमें पूर्वमें बन्धगुन्छिति और पश्चात् उदयव्युच्छिति जिन ८१ प्रकृतियोकी होती है उनकी गोयल मस्याका निर्देश है सं० पं० सं० में उनके नाम भी बताये है। इसी तरह आगे परोदयवन्धी प्रकृतियोको बतलानेके पश्चात् मं० १० मं० में एक गद्यवाक्यके द्वारा यह भी स्पष्ट किया है कि क्यों ये प्रकृतिया परके उदयमे बंधती है। प्रा०पं० स० मे अपने उदय और परके उदयमें वन्धनेवाली प्रकृतियोकी केवल मंख्या दी है। किन्तु सं० प०सं० में उनके भी नाम गिनाये है । अन्तमे गद्य द्वारा सान्तर और निरन्तर वन्धका गद्य द्वारा स्वरुप भी कहा है। इस तरह स० पं० स० मे मूलसे वैशिष्ट्य भी है। अमितगतिके पं० स० में ये सब कथन डड्ढाके अनुसार ही किया गया है।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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