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________________ ३७४ : जैनगाहित्यका इतिहाग गरे प्रगति गगन अभियान (To ६७४ ) 'ना' करक गोल17 उन पर अगानन्द्रगणगंगागागा ग्याग्या ग्लोm । मत पगी रनना II गार (गी गती) गाना । ग TRai पगमा मगगी परिभि किमी गमी गती नितिनी । अब गजगापिका और मात ।। १ भागार नदिने नागा पर गानापिनी टीनी मी गनुयं मागागोदर गगी टीला न्याय गम्बनाम पनि यो शत है। ये पानी दलो न गम भागार निता गमय १३-१४ची गती है। अत पर मनमानी गाना नही। २ गम्नानिय ( गाथा ५६ ) की टीगाम जगनानागंने एक ग्लोक उदात लिया। 'मोक्ष गुर्षन्ति गिोषणामा शामिकाभिषा । बन्धमोदगिका नाया निकिया पारिणागिा ॥' गह सदा पस्नगगहा नवा लोग है। जयगेनानायकी टीम पर बतादेवारी वृहनगमग्रहका रगाट प्रभाव है। ३ बृहनग नगहणी ४१वी गायाकी ग्रहाय रनित टीकामे गम्यक्त्वका गाहात्म्य बतलाना लिा प्रगम र गागा 'हेछिमछणुटनीण' आदि उद्धत को है जो गोम्पटगार जीवगामी १२८वो गाया है। उनके पश्चात् ही 'उनी अर्गको प्रकारातरने गहते है' लिगका तीन र उद्धत किये है। ये तीनो फ्लोगवा पन्तनगहो जीवगगाग प्रारण उनी क्रमने वर्तमान है और उनकी गंम्मा प्रगगे २२७, २२९, २३० है। अत ब्रह्मदेवजीको उक्त टीकामे पूर्व उढाका पन्जमग्रह रना गया था। इस तरह अमृतचन्द्र और बनादेवने अन्तरालमें किसी समय उड्ढाने अपना पञ्चमग्रह रचा था। आचार्य अमितगति भी इनी अन्तगलम हुए है। उन्होंने अपना पञ्चगग्रह वि०स० १०७०मे ममाप्त किया था। इस तरह उड्ढाके गमयकी पूर्व और उत्तर अवधि निश्चित हो जाने पर भी यह निर्णय शेप रहता है कि दोनो पन्चगंग्रहोने मे पहले फिसको रनना हुई थी? __इसका अन्वेषण करते हुए हमें जयसेनाचार्यके धर्मरत्नाकरमे पचायती जैन मन्दिर देहलीकी प्रतिके पृ० ६७ पर एक उद्धत पद्य मिला 'वचनहेतुभी रूप : सर्वेन्द्रियभयावहै । जुगुप्साभिश्च बीभत्स व क्षायिकदृक् भवेत् ॥ यह डड्ढाके पञ्चसग्रहके जीवसमास प्रकरणका २२३वा श्लोक है । अत
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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