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________________ जयधवला-टीका . २७५ उन्होने छठवें महावन्ध पर सात हजार श्लोक प्रमाण पजिका भी लिखी थी। इस प्रकार उनको कुल रचनामोका प्रमाण ९१ हजार था। धवला और जय धवलामें इनका कोइ उल्लेस हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ। भट्टाकलक नामक एक विद्वान्ने अपने कर्नाटक 'शब्दानुशासनमें कनडी भापामें रचित चूडामणि नामक महाशास्त्रका उल्लेख किया है। किन्तु उसे तत्वार्थ महाशास्नका व्याख्यान वतलाया है तथा उसका परिणाम भी ९६ हजार बतलाया है। इससे इतना तो प्रमाणित होता है कि कनड़ी भापामें एक चूडामणि नामक वृहत्काय व्याख्या थी। किन्तु वह व्याख्या इन्द्रनन्दिके कथनानुसार दोनो सिद्धान्त ग्रन्थोकी या भटाकलकके निर्देशानुसार तत्त्वार्थ महाशास्त्रकी थी, यह विचार-ग्रस्त है। तत्त्वार्थ महागास्त्र' तत्त्वार्थ सूत्रको कहा गया है। विद्यानन्दिने 'तत्त्वार्थशास्त्र' नामसे उसका उल्लेख किया है। किन्तु आदरणीय श्री जुगलकिशोर जी मुख्तारने लिखा है-तत्त्वार्थ सूत्रका अर्थ तत्त्वार्थ विपयक शास्त्र होता है और इसीसे उमास्वातिका तत्त्वार्थ-सूत्र, तत्वार्थ-शास्त्र और तत्त्वार्थाधिगम मोक्षशास्त्र कहलाता है किन्तु मापने यह भी लिखा है कि पुष्पदन्त भूतवल्यादि आचार्यों द्वारा विरचित सिद्धान्त शास्त्रको भी तत्त्वार्थ शास्त्र या तत्त्वार्थ महाशास्त्र कहा जाता है। इन सिद्धान्त शास्त्रो पर तुम्वुलूराचार्यने कनडी भापमें चूडामणि नामको टीका लिखी है जिसका परिमाण इन्द्रनन्दिकृत 'श्रुतावनारमें ८४ हजार और कर्नाटक शब्दानुशासमें ९६ हजार श्लोकोका बतलाया है।' कर्नाटक शब्दानुशासनके उल्लेखको उद्धृत करके मुख्तारसाहबने लिखा है-'इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि चूडामणि जिन दोनो ( कर्मप्राभृत और कषाय प्राभूत ) सिद्धान्त शास्त्रोकी टीका कहलाती है, उन्हें यहां तत्वार्थ महाशास्त्रके नामसे उल्लेखित किया गया है । इससे सिद्धान्तशास्त्र और तत्वार्थ दोनोकी एकार्थताका समर्थन होता है । और साथ ही यह पाया जाता है कि कर्मप्राभृत कषाय प्राभूत ग्रन्थ तत्वार्थसूत्र कहलाते थे। तत्वार्थ विपयक होनेसे उन्हें तत्वार्थशास्त्र या तत्वार्थसूत्र कहना कोई अनुचित भी प्रतीत नहीं होता।' - १ 'न चैपामापा शास्त्रानुपयोगिनी, तत्त्वार्थमहाशास्त्रव्याख्यानस्य पण्णवतिसहस्रप्रमित ग्रन्थसन्दर्भरूपस्य चूडामण्यमिधानस्य महाशास्त्रस्य । -'इन्सक्रिाशन्स ऐट श्रवणबेलगोला' से उद्धत । २ 'प्रमाणनयैरधिगम' इति महाशास्त्र तत्त्वार्थसत्रम् ।-न्या० दी० । ३ ननु च तत्त्वार्थशास्त्रस्यादिसूत्र'-त० श्लो० वा०, पृ० ४ । इति तत्त्वार्थशास्त्रादौ-आ० प० अन्तिम श्लोक । ४ जै० सा० इ० वि० प्र०। .
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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