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________________ २२८ : जैनसाहित्यका इतिहास कर लेनेपर १५ दिन होते है । अत २९ वर्ष ५ मास, २० दिन तक भगवान् महावीर केवली रहे। ९ मास ८ दिन + २८ ५० ७ मा० १२ दि०+१२ व०, ५ मा०, १५ दि० + २९ व० ५ मा०, २० दि० इस सब कालका जोड ७१ वर्ष, ३ मास, २५ दिन होता है । इतनी ही महावीर भगवान्की आयु वैठती है। किन्तु जब चौथे कालमें ७५ वर्ष ८ माह १५ दिन शेप थे तब भगवान् महावीर गर्भमें आये थे और उनके निर्वाणके पश्चात् तीन वर्ष, ८ माह, १५ दिन बीतनेपर श्रावण कृष्णा पडवाके दिन पाचवें दुपमा कालका प्रवेश हुआ। इस हिसावसे भगवान् महावीरको आयु बहत्तर वर्ष ठहरती है। इस तरहसे दोनोमें ८ माह ५ दिन का अन्तर पडता है। ___इन दोनो उपदेशोभेसे कौन ठीक है ? इस प्रश्नके उत्तरमें वीरसेन स्वामीने लिखा है-'इस विपयमें एलाचार्यका वत्स्य ( वीरसेन ) अपनी जवान निकालना नहीं चाहता, क्योकि न तो इस त्रिपयमें कोई उपदेश प्राप्त है और न उक्त दोनो कथनोमें ही कोई बाधा है किन्तु दोनोंमेंसे सत्य एक ही होना चाहिए।' (पु० ९, पृ० १२६ )। तिलोयपण्णत्ति ( म० ४ ) में भगवान महावीरकी आयु ७२ वर्ष वतलाई है और गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाणकी तिथिया उक्त प्रकारसे ही दी है। इसी तरह श्वेताम्बरी' आगमिक साहित्यमें भी आयु ७२ वर्ष और तिथिया उक्त ही है। केवल मोक्ष-दिवसमें एक दिनका अन्तर है। कार्तिक कृष्णा अमावस्याको रात्रिमें मुक्ति वतलाई है । तथा महावीरके गर्भमें आनेका काल भी वही दिया है जो ऊपर धवलामें दिया है अर्थात् चतुर्थ कालमे ७५ वर्ष ८॥ माह शेष रहने पर महावीर भगवान गर्भमैं माये । अत. मोटी कालगणनामें और दिन मासकी काल गणनामें ८ मास ५ दिनका अन्तर रह जाता है । वीरसेन स्वामीने अपनी जयधवला टीकाके आरम्भमें भी उक्त मतभेदको चर्चा बिल्कुल इसी रूपमें की है। अर्थकर्ताके पश्चात् ग्रन्थकर्ताका कथन करते हुए धवलाकारने लिखा हैभगवान् महावीरकी वाणी तो वीजपदरूप होती है। जिसकी शब्दरचना सक्षिप्त हो, और जो अनन्त अर्थोका ज्ञान कराने में हेतुभूत अनेक चिन्होसे सयुक्त हो उसे वीजपद कहते है। इन बीजपदोमें जो अर्थ निहित रहता है उसका प्ररूपण १. 'पचहत्तरिए वासेहि अद्धनवमेहि य मासेहि सेसेहि.."त्ति, पञ्चसप्ततिवसु सार्धाष्टमा साधिकेषु शेपेसु श्रीवीरावतार । द्वासप्ततिवर्षाणि च श्रीवीरस्यायु । श्रीवीरनिर्वाणाच्च विभिर्व सार्द्धाष्टमासैश्चतुर्थारकसमाप्ति ।'-कल्पसूत्र सुबो० । २. क. पास, भा१, पृ. ७६-८२ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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