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________________ ८ : जैन साहित्यका इतिहास कपायपाहुड कषायप्राभृतके रचयिता गुणधर वीरसेन स्वामीको जयभचला टीका तथा इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारंगे यह तो स्पष्ट है कि कायपाहुडके रचयिता आचार्य गुणधर थे । हिन्तु ये कौन थे और कब हुए थे इत्यादि वातोको जानने के कोई गाधन दृष्टिगोचर नहीं होते । इन्द्रनन्दिने' तो अपने श्रुतावतार स्पष्ट लिन दिया है कि गुणवर और घररोन के वणगुरुके पूर्वापर क्रमको हग नही जानते, क्योकि उनके अन्ययका कथन करने वाले आगम गर मुनिजनो का अभाव है । ऐगी स्थितिमे गुणवर और घरसेनकी वशपरम्पराके सम्वन्धमे तथा उनके पौर्वापर्यके सम्वन्धमे निश्चित रुपये कुछ कह सकना कितना कठिन है, यह लिखनेकी आवश्यकता नहीं है । इन्द्रनन्दिके पूर्वज बोरसेन दोनोको चीर निर्वाणगे ६८३ वर्ष पश्चात् हुमा बतलाते है, किन्तु दोनो की पूर्वपरम्पराके सम्बन्धमे वह भी मूक है । अत स्पष्ट है कि वीरसेन स्वामीको भी दोनोका पूर्वापर क्रम ज्ञात नही था । चूकि वीर निर्वाण ६८३ वर्ष पर्यन्त अगज्ञानके प्रवाहित होनेकी परम्परा प्रवर्तित थी ओर अगज्ञान के प्रवर्तित रहते किसी अगज्ञानीने अंगज्ञानको पुस्तकास्ट करनेका प्रयत्न किया हो, ऐसा कोई सकेत अनुपलब्ध था और गुणधर तथा घरसेनका नाम अंगज्ञानियोकी परम्परामें था नही । अत वीरसेनने दोनोको वीर निर्वाणके ६८३ वर्षके पश्चात् बतला दिया । किन्तु ६८३ वर्षके कितने काल पश्चात् दोनो हुए, यह भी वह नही बतला सके । were जहाँ तक हम जान मके है, वीर निर्वाणके पश्चात् ६८३ वर्ष पर्यन्त होने वाले अंगज्ञानियोकी परम्पराका सबसे प्राचीन निर्देश / त्रिलोकप्रज्ञप्तिमे मिलता है । त्रिलोकप्रज्ञप्ति आचार्य यतिवृपभकी कृति मानी जाती है । और आचार्य यतिवृपभने ही गुणधरके कसायपाहुडपर चूर्णिसूत्रोकी रचना की थी । किन्तु उन्होने भी गुणधरके विपयमे कुछ नही लिखा । अत. हमे गुणधराचार्यकै विषयमे जयधवला टीका और इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारसे ही नीचे लिखी जानकारी प्राप्त होती है- --१ गुणधराचार्य ज्ञानप्रवाद नामक पञ्चम पूर्वकी दसवी वस्तु सम्बन्धी तीसरे कषायप्राभृत या पेज्जदोसपाहुडरूपी महासमुद्र के पारगामी थे । १. 'गुणधरधरसेनान्वयगुर्वी. पूर्वापरक्रमोऽस्माभि । न ज्ञायते तदन्वयकथकागममुनिजनाभावात् ॥ १५१ ॥ २ ति० प० अ० ४, गा० १४७६ - १४९२ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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