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________________ १४६ : जैनसाहित्यका इतिहास दोनो गिन्द्वान्त-ग्रन्थोके तुलनात्मक अध्ययनपर प्रकाश डालना अनुचित न होगा। शैली और भापाकी दृष्टिसे दोनोको भिन्नता पहले ही लिपी जा चुकी है। अतएव इस सन्दर्भमे विषय-वस्तु के प्रतिपादनकी दृष्टिगे दोनोका तुलनात्मक निरूपण आवश्यक है। यहां यह ध्यातव्य है कि छक्पंडागमके वेदना और वर्गणा पडमै पच्चीस गाथा-सूत्र आये है, जो प्राचीन प्रतीत होते है। इसी प्रकार कागायपाहुडकी भी कुछ गाथाएँ गुणधर-विरचित न भी हो, पर वे जिग कगायपाहुडको उपसंहत किया गया है उगीने ज्यो-की-त्यो ले ली गयी हो। यत प्राचीन परिपाटी ऐमी रही है। एक विचारणीय वात यह है कि कसायपाहुट और छपवडागमको कुछ गाथाएं अन्य ग्रन्योमे मिलती है। परन्तु कगायपाहुडकी कोई भी गाथा न तो छक्मंडागममे मिलती है और न छपसंडागमकी कोई गाथा कसायपाहुडमे ही उपलब्ध होती है। अन्य भी कोई ऐसा तथ्य नहीं मिलता है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि एककी छाया दूसरेपर है अथवा एकके रचयिताने दूमरेकी कृतिको देखा है । किन्तु थोडा-सा सादृश्य जहां प्रतीत होता है उसका उल्लेख कर देना भी अनुचित न होगा। ___ कसायपाहुडके सम्यक्त्वअधिकारके प्रारम्भमे चार गाथाओके द्वारा पृच्छा की गयी है । गाथाएं इस प्रकार है दसणमोहउवसामगस्स परिणामो केरिसो हवे । जोगे फसाय उवजोगे लेस्सा वेदो य को भवे ॥९१।। काणि वा पुन्व बद्धाणि के वा असे णिबंधदि । कदि आवलिय पविसति फदिण्हं वा पवेसगो ॥१२॥ के असे झीयदे पुवं बंधेण उदएण वा। अंतरं वा कहि किच्चा के के उवसामगो कहिं ॥९॥ किं द्विदियाणि कम्माणि अणुभागेसु केसु वा। ओवढेवण सेसाणि कं ठाणं पांडवज्जदि ॥१४॥ अर्थ-दर्शनमोहका उपगम करने वाले जीवका परिणाम कैसा होता है ? किस योग, कपाय और उपयोगमें वर्तमान होता है, उसके कौन-सी लेश्या और कौन-सा वेद होता है ? ॥९१।। उसके पूर्ववद्ध कर्म कौनसे है और अब कौनसे नवीन कर्माशोको वाधता है ? किन-किन प्रकृतियोका उसके उदय होता है और किन-किनकी वह उदीरणा करता है ? ॥९२।। दर्शनमोहके उपशमकालसे पूर्व बन्ध अथवा उदयकी अपेक्षा कौन-कौनसे कर्मांश क्षीण होते है ? कहाँ अन्तर करता है और कहाँपर किन-किन कर्मोंका उपशामक होता है ? ॥९३॥ किस-किस स्थिति और
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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