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________________ १२४ : जनगाहित्यका निहाग u TIFUS vai 11.717 P affoni, hari rolli il, refrifrin, रपान, Air, Hiuminान, मान, गपनिभान, •irintent, it, miniml, Mitri.. रिधान, सnिifoli, rifममाल, गाभागाभागान और स्गो गया। जगल और mirmframe ना गोगामे किया गया। HिTE HAI TERE Im पतग !--meri mami. H i-, HAMITTER SEE , मां- i mi EtE , और भा समर का iPATIit गया । गालोग गिा। गाना mami गगनमा गिय । लुनार Maitri नरी स्वीकार गरी ani mi, ol.mi. meकोर .. रिता । माग III, गर भाग को होता . 13.300 नीगंगासामीने पालायामर पाली अगुफ नमः जगा गाही पण और finी सा | निपग नगमानना पशात् गाने पिक तंग प्रभारी का अर्थ बतलाया है-- जिरा जीव या अगीयका सर्ग नाग रगा जाता रह नामस्पर्ग है । नाप्ठ कर्म, चियकर्म आदिगं म्पकी स्थापना स्थापनापन है। एमपा दूसरे प्रध्यक साथ स्पर्शको प्राप्त होना द्रव्यमर्श है ।।१२।। इगको गलाटीका वीरगनस्वामीने द्रव्यस्पर्शक ६३ विकल्पोका गायन गिया है। जो द्रव्य एक धोके साथ स्पर्श करता है यह एकादशपर्श है ॥१४॥ जैसे एकआकाशप्रदेशमे स्थित पुद्गलसन्धोगा जो स्पर्श होता है गह एकक्षणम्पर्श है । जो द्रव्य अनन्तर क्षेनके साथ स्पर्श करता है वह अनन्तरोगस्पर्ग है ।।१६॥ जो द्रव्य एक देशरूपरी अन्य उपके अवयवके साथ स्पर्श करता है वह देशस्पर्श है ॥१८॥ जो द्रव्य त्वना (छाल) या नोत्वना (ऊपरी पपडी) को स्पर्श करता है वह त्वक्स्पर्श है ॥२०॥ जो द्रव्य सवका गव सर्वात्मना स्पर्श करता है वह सर्वस्पर्श है, जैसे परमाणु ॥२२॥ कर्कश, मृदु, आदि आठ प्रकारका स्पर्श स्पर्शस्पर्श है ॥२४॥
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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