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________________ कर्मस्थितिरचना अधिकार ४१२ / लब्धिसार-क्षपणासार ४१२ ४१७ देवसेनकृत भावसग्ग्रह कर्ता और समय ४२०. ४२९ गर्गषि रचित कर्मविपाक प्रकृतियोंके स्वरूपमें अंतर ४३० आचार्य ग ४३१ गोविन्द्राचार्य रचित कर्म - स्तव वृत्ति वध स्वामित्व जिनवल्लभ गणि रचित षडषीति देवेन्द्रसूरि रचित नव्य कर्मग्रथ ( ११ ) कर्मविपाक कर्मस्तव बधस्वामित्व षडशीति समय श्रुतमुनि की रचनाएँ ४३२ ४३२ ४३२ ४३३ ४३४ ४३४ ४३४ ४३५ शतक ४३५ कर्मग्रथो की स्वोपज्ञ टीका ४३५ ग्रंथकार तथा उनका समय ४३६ संस्कृत कर्मग्रथ ४३६ - कर्मप्रकृति नामक अन्यग्रथ ४३६ संकलिता का नाम तथा ४४० ४४२ ' भावविभगी आस्रवत्रिभागी श्रुतमुनि का परिचय और समय ૪૪૪ पचसग्रह की प्राकृत टीका ४४५ . सिद्धान्तसार ४५० ग्रथकार ४५० सकलकीर्ति का कर्मविपाक ४५२ सिद्धान्तसार भाष्य ४५३ ज्ञानभूषण की दो गुरु'परम्पराएँ समय विचार त्रिभगी टीका रचयिता और समय गोम्मटसार की टीकाएँ मन्दप्रबोधिक टीका कर्ता और रचनाकाल जीवतत्त्व प्रदीपिका समयविचार टीकाका परिचय सुमतकीर्तिकी पंचसग्रह वृत्ति रचयिता का परिचय पञ्चसग्रह वृत्ति वामदेव का संस्कृत ४४२ ४४३ भावसग्रह रचयिता समय ४५४ ४५५ ४६० ४६१ ४६३ ४६६ ४६७ ४७० ४७३ ४७७ ४७७ ४७८ ४७९ ४८२ ४८४ +
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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