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________________ छक्खडागम १०९ सभी कर्मोके प्रदेशाग्र के निक्षेपणका यही क्रम है। सूचकारने मोहनीय, आयु आदिके भी प्रदेशाग्रोके निक्षेपणका चयन इमी प्रकार किया है। उक्त कर्मोसे मोहनीय और आयु कर्म की स्थिति और गावाधामें अन्तर होनेसे ही उनका पृथका कथन किया है। आवाधाकाण्डकप्ररूपणा- 'अवाधकंदयपरूवणदाए' ॥१२१।। सूत्रकी धवलाटीकामें यह शका की गई है कि आवाधाकाण्डकप्ररूपणा किम लिये की गई है ? ममाधानमे कहा गया है कि गव स्थितिवन्धस्थानोंमें एक ही आवाचा होती है या भिन्न-भिन्न आवाधा होती है, यह बतलानेके लिये आवाधाकाण्डकपम्पणा की गई है। यथा 'सजी और अमज्ञी पञ्चेन्द्रिय, तेइन्द्रिय, दोइन्द्रिय, वादर और सूक्ष्म एकेन्द्रिय, इन पर्याप्त व अपर्याप्त जीवोके आयुको छोडकर शेप मात कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिमे समय ममयमें पल्पोपमके अमख्यातवें भाग नीचे उतर कर एक आवाधाकाण्डकको करता है । यह क्रम जघन्य स्थिति तक है ।।१२२॥ आशय यह है कि उत्कृष्ट आवाधाके अन्तिम समयको पकडनेपर उत्कृष्ट स्थितिसे पल्पोपमके असख्यातवें भाग मात्र नीचे उतरकर एक आवाधाकाण्डकको करता है । अर्थात् आवाधाके अन्तिम समयको पकडकर उत्कृष्ट स्थितिको वाँधता है, उमसे एक समय कम स्थितिको बांधता है, दो ममय कम स्थितिको वांधता है । इस प्रकार पल्योपमके असख्यातवें भाग कम स्थिति तक ले जाना चाहिये। इस तरह आवाघाके अन्तिम समयमें बन्धयोग्य स्थितिविकल्पोको एव आवाधाकाण्डक कहते है । आवाधाके उपान्त्य समयको पकडकर भी इसी प्रकार दूमरे आवाधाकाण्डकका कथन करना चाहिये । आवाबाके त्रिचरम समयको पकडकर तीसरे आवाधाकाण्डकी प्ररूपणा करना चाहिये । जघन्य स्थिति तक यही क्रम जानना चाहिये । अल्पवहुत्वमें-सूत्रकारद्वारा चौदह जीवसमामोमें ज्ञानावरणादि मात कर्मों तथा आयुकर्मकी जघन्य व उत्कृष्ट आवाघा, आवाधा स्थान, आवाधाकाण्डक, नाना प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर, एकप्रदेशगुणस्थानान्तर, जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिवन्ध तथा स्थितिवन्धस्थान इन सबके अल्पवहुत्वकी प्ररूपणा विस्तारमे की गई है। यथा___ सज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीवोके आयुको छोडकर १ पु० ११, पृ० २६६ । २ पु० ११, पृ० २७०
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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