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________________ सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत यह भी अपने ढंगका अपूर्व और प्रामाणिक ग्रन्थ है और अर्थशास्त्र को समझने में इससे बहुत सहायता मिलती है । इसमें भी विशालाक्ष, पुलोमा, यम आदि प्राचीन नीतिग्रन्थकर्त्ताओं के मतों का उल्लेख है । कामन्दक के नीतिसारके बाद जहाँ तक हम जानते हैं, यह नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ ही ऐसा बना है, जो उक्त दोनों ग्रन्थोंकी श्रेणी में रक्खा जा सकता है और जिसमें शुद्ध राजनीतिकी चर्चा की गई है । इसका अध्ययन भी कौटिलीय अर्थ- शास्त्र के समझने में बड़ी भारी सहायता देता है । ६३ नीतिवाक्यामृतके कर्ताने भी अपने द्वितीय ग्रन्थ ( यशस्तिलक ) में गुरु, शुक्र विशालाक्ष, भारद्वाजके नीतिशास्त्रों का उल्लेख किया है' । मनुके भी बीसों श्लोकोंको उद्धृत किया है । नीतिवाक्यामृत में विष्णुगुप्त या चाणक्यका और उनके अर्थशास्त्रका उल्लेख है । बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, आदिके अभिप्रायोंको भी उन्होंने नीतिवाक्यामृतमें संग्रह किया है, जिसका स्पष्टीकरण नीतिवाक्यामृतकी - संस्कृत टीका से होता है । स्मृतिकारोंसे भी वे अच्छी तरह परिचित मालूम होते हैं। इससे हम कह सकते हैं कि नीतिवाक्यामृतके कर्ता पूर्वोक्त राजनीतिके १ - “ न्यायादवसरमलभमानस्य चिरसेवकसमाजस्य विशप्तय इव नर्मसचिवोक्तयः प्रतिपन्नकामचारव्यवहारेषु स्वैरविहारेषु मम गुरुशुकविशालाक्ष परीक्षितपराशर भीम भीष्मभारद्वाजादिप्रणीतनीतिशास्त्रश्रवणसनाथं श्रुतपथमभजन्त । ” – यशस्तिलक चम्पू, आश्वास २, पृ० २३६ । २ " दूषितोऽपि चरेद्धर्म यत्र तत्राश्रमे रतः । " समं सर्वेषु भूतेषु न लिङ्गं धर्मकारणम् ॥ " इति कथमिदमाह वैवस्वतो मनुः । ” – यशस्तिलक आ० ४, पृष्ठ १०० | यह लोक मनुस्मृति अ० ६ का ६६ वाँ लोक है । इसके सिवाय यशस्तिलक आश्वास ४, पृ० ९०९१ - ११६ ( प्रोक्षितं भक्षयेत् ), ११७ ( क्रीत्वा स्वयं ), १२७ ( सभी श्लोक ) १४९ ( सभी श्लोक ), २८७ ( अधीत्य ) ये श्लोक भी मनुस्मृतिमें ज्योंके त्यों मिलते हैं । यद्यपि वहाँ यह नहीं लिखा है कि ये मनुके हैं । ' उक्तं च ' रूपमें ही दिये हैं । ३-नीतिवाक्यामृत पृ० ३६ सूत्र ९, पृ० १०७ सूत्र ४, पृ० १७१ सू० १४ आदि । 66 ४ विप्रकीतावूढापि पुनर्विवाहदीक्षामर्हतीति स्मृतिकारा: " — नी० वा० पृ० ३७७, सू० श्रुतेःस्मृतेर्बाह्यबाह्यतरे ”. - यशस्तिलक आ० ४, पृ० १०५; २७; -- श्रुतिस्मृतीभ्यामतीव बाह्ये ” यशस्तिलक आ० ४, पृ० १११; “ तथा च स्मृतिः " पृ० ११६; और " इति स्मृति'कारकीर्तितमप्रमाणीकृत्य " पृ० २८७ । 66 ""
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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