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________________ ६० जैनसाहित्य और इतिहास ग्रन्थ हैं। इसी तरह ४०७ नम्बरकी गार्थीमें निर्यापक गुरुकी खोजके लिए परसंघमें जानेवाले मुनिकी 'आयार-जीद-कप्पगुणदीवणा' होती है। विजयोदया टीकामें इस पदका अर्थ किया है, 'आचारस्य जीतसंज्ञितस्य कल्पस्य गुणप्रकाशना ।' और पं० आशाधरकी टीकामें लिखा है, 'आचारस्य जीदस्य कल्पस्य च गुणप्रकाशना । एतानि हि शास्त्राणि रत्नत्रयतामेव दर्शयन्ति । ' पं० जिनदासशास्त्रीने हिन्दी अर्थमें लिखा है कि 'आचारशास्त्र, जीतशास्त्र और कल्पशास्त्र इनके गुणोंका प्रकाशन होता है ।' अर्थात् तीनोंके मतसे इन नामोंके शास्त्र हैं और यह कहनेकी जरूरत नहीं कि आचारांग और जीतकल्प श्वेताम्बर सम्प्रदायके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । ___ इन सब बातोंसे मेरा अनुमान है कि शिवार्य भी यापनीय संधके आचार्य होंगे । पण्डित जन सावधानीसे अध्ययन करेंगे तो इस तरहकी और भी अनेक बातें मूल ग्रन्थमें उन्हें मिलेंगी जो दिगम्बर सम्प्रदायके साथ मेल नहीं खातीं । मैने तो यहाँ दिग्दर्शन मात्र किया है। साम्प्रदायिक आग्रहसे और पाण्डित्यके जोरसे खींच-तान करके मेल बिठाया जा सकता है, परन्तु इतिहासके विद्यार्थी ऐसे पाण्डित्यसे दूर रहते हैं, उनके निकट सत्यकी खोज ही बड़ी चीज है। ___ अन्तमें मैं फिर इस बातपर जोर देता हूँ कि यापनीय संघके साहित्यकी खोज होनी चाहिए, जो न केवल हमारे प्राचीन मन्दिरोंमें ही बन्द पड़ा है बल्कि विजयोदयाटीका और मूलाराधनाके समान उसे हम अबतक कुछका कुछ समझते रहे हैं । __ अपभ्रंश भाषाके महाकवि स्वयंभूको महापुराण ( पुष्पदन्तकृत ) की टिप्पणीमें यापनीय संघका लिखा है । स्वयंभूके पउमचरिय और हरिवंशपुराण उपलब्ध हैं। पुष्पदन्तने अपने महापुराणमें स्वयंभूका स्मरण किया है। __ शाकटायनने अपने एक सूत्रमें कहा है, 'उपविशेषवादिनं कवयः' ( १-३१०४ ) अर्थात् सारे कवि विशेषवादिसे नीचे हैं और वादिराजसूरिने अपने पार्श्वनाथचरितमें उनके ' विशेषाभ्युदय' काव्यकी प्रशंसा की है । ये विशेषवादि भी यापनीय संघके जान पड़ते हैं। १-आयारजीदकप्पगुणदीवणा अत्तसोधिनिझंझा। अजवमद्दव-लाघव-तुट्टी पल्हादणं च गुणाः ।। यही गाथा जरासे पाठान्तरके साथ १३० वें नम्बरपर भी है। उसमें ' तुट्टी पल्हादणं च गुणाः ' की जगह · भत्ती पल्हादकरणं च ' पाठ है ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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