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________________ ३६ जैनसाहित्य और इतिहास दर्शनसार,, अध्यात्मतरंगिणी आदि अनेक ग्रन्थोंकी भाषावचनिकायें लिखी हैं । वे कट्टर बीसपन्थी थे। ५-संस्कृत आराधना-माथुरसंघके आचार्य अमितगतिके बनाये हुए धर्मपरीक्षा, उपासकाध्ययन, सुभाषितरत्नसंदोह, पंचसंग्रह आदि ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । ये नेमिषेण आचार्यके प्रशिष्य और माधवसेनके शिष्य थे। इन्होंने अपने अनेक ग्रन्थोंमें रचनाका समय दिया है, इस लिए उनका समय निर्णीत है। वे विक्रमकी ग्यारहवीं सदीके विद्वान् हैं। आचार्य शिवकोटिकी आराधनापर उन्होंने टीका तो नहीं लिखी है, परन्तु उसका संस्कृत पद्योंमें अनुवाद किया है जो विजयोदया और दर्पणके साथ प्रकाशित हो चुका है । पं० आशाधरजीने अपने अनगारधर्मामृतकी टीकामें इस संस्कृत — आराधना 'के कुछ श्लोक उद्धृत भी किये हैं। इसकी रचना भगवती आराधनाकी प्रत्येक गाथाका अभिप्राय लेकर मुख्यतः संस्कृत अनुष्टुप् श्लोकोंमें की गई है, बीच बीचमें दूसरे छन्द भी हैं। रचना प्रायः अनुवादरूप ही है । जिस प्रतिपरसे उक्त मुद्रण हुआ है, उसमें प्रारंभके १९ श्लोक नहीं है, नष्ट हो गये हैं। संस्कृत आराधनाका अन्तिम अंश इस प्रकार है आराधना भगवती कथिता स्वशक्त्या, चिन्तामणि वितरितुं बुधचिन्तनानि । अह्नाय जन्मजलधि तरितुं तरण्डं, भव्यात्मना गुणवती ददतां समाधिम् ॥ १२ ॥ श्रीदेवसेनोऽजनि माथुराणां गणी यतीनां विहितप्रमोदः । तत्त्वावभासी विहितप्रदोषः सरोरुहाणामिव तिग्मरश्मिः ॥ धृतजिनसमयोऽजनिमहनीयो गुणमणिजलधेस्तदनु यतियः। शमयमनिलयोऽमितगतिसूरिः प्रदलितमदनो पदनतसूरिः॥ सर्वशास्त्रजलराशिपारगो नेमिषेणमुनिनायकस्ततः । सोऽजनिष्ट भुवने तमोपहः शीतरश्मिरिव यो जनप्रियः॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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