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________________ जैन साहित्य और इतिहास विक्रमादित्य ' शकारि ' या शकोंको जीतनेवाले थे । उनका स्थान उज्जयिनी बतलाया जाता है । यह मौर्यकाल में, टालमीके कथनानुसार चष्टनके समय में और हरिवंश पुराणकर्त्ता जिनसेन के आधारपर शुंग- कालमें भी पश्चिमी भारत की राजधानी थी । प्रो० रापसनने ऋषभदत्त और गौतमीपुत्र के शिलालेखों और नहपानके सिक्कों के आधारपर सिद्ध किया है कि नहपानको गौतमीपुत्रने जीत लिया था और इस प्रकार सारा मालवा उज्जयिनी और अवन्तीसहित शकोंसे मुक्त हो गया था । नहपान शक थी । आवश्यक सूत्र और उसकी टीका आदि जैनग्रन्थोंसे जान पड़ता है कि शालिवाहन राजाने नहवान ( नहवान ) की राजधानी कई चढ़ाइयों के पश्चात् जीत ली और नहवान अन्तिम घेरे में मारा गया । यह शालिवाहन गौतमी पुत्र शातकर्णि ही था । इसका समय ईस्वी सन् पूर्व १००-४४ है । इसके अभिषेक के १८ वें वर्षमें यह युद्ध हुआ था । सोपपत्तिपूर्वक समझने के लिए पूरा लेख पढ़ना चाहिए | ५५८ खारवेल और गर्दभिल्ल - जायसवाल महाशय ने यह भी सिद्ध किया है कि उड़ीसा के जैन सम्राट् महामेघवाहन खाखेलकी सन्ततिमें जो सात राजा हुए हैं, वे गर्दभिल्ल कहलाते थे । खाखेल और गईभिल्ल एक ही हैं। खाखेलसे खरवेल हुआ, खर और गर्दभ पर्यायवाची एक ही अर्थ के शब्द हैं । इस तरह खारवेलसे गर्दभिल शब्द बन गयाँ | उज्जैनका गर्दभिल्ल राजा जिसका उल्लेख कालिकाचार्य के कथानक में है, उक्त राजाओं में अन्तिम था । १ त्रिलोक-प्राप्ति वीरनिर्वाण-काल-गणना बतलाते हुए जिस नरवाहनका ४० वर्ष राज्य करना लिखा है, वह शायद यही है । इसके बाद ' भचंधाण' का २४२ वर्ष राज्य बतलाया है, जो हमारी समझमें ‘अत्यान्त्राणां' का अपभ्रंश है । गौतमीपुत्र इस आन्ध्रवंशका ही होगा । २ त्रिलोकप्रज्ञप्तिर्मे पुष्यमित्र और अग्निमित्र राजाओंके बाद १०० वर्ष तक 'गंधव्वाणं' ( गन्धर्व राजाओं) का राज्य बतलाया है । संस्कृत हरिवंशपुराणके कर्त्ताने त्रिलोकप्राप्तिके ही आधारसे अपनी काल-गणना लिखी है । उन्होंने शायद ' गंध वाणं ' को ' गद्दभाणं पढ़कर संस्कृतर्भे ' गर्दभानां समझा और उसका पर्यायवाची शब्द रासभानां अर्थात् रासभ राजा लिख दिया है । क्या गन्धर्व, गर्दभ, या रासभ उक्त खारवेल या खरखेलके ही वंशके राजा नहीं हो सकते ? , , ,
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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