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________________ छान-बीन ५५५ इस बातका पता उगानेकी ज़रूरत है कि शिल्पशास्त्रोंमें तथा प्रतिष्ठापाठोंमें भी इसके लिए कुछ विधान है या नहीं और यह पद्धति कितनी पुरानी है । ९-दक्षिणकी जैन जातियाँ दक्षिणमहाराष्ट्र-जैनसभाने अपने यहाँकी अन्तर्जातियोंको एक करने के सम्बन्धमें एक प्रस्ताव पास किया है । उसके अनुसार प्रचार करने के लिए सभाके महामन्त्री श्रीयुत कुदले महाशयने दौरा करके उसकी एक रिपोर्ट लिखी है । उससे मालूम हुआ कि दक्षिण महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रान्तमें (मैसूर स्टेटको छोड़कर) जैनोंकी केवल चार जातियाँ हैं, (१) पंचम, (२) चतुर्थ, (३) कासार बोगार और (४) शेतवाल । पहले ये चारों जातियाँ एक ही थीं और 'पंचम' कहलाती थीं । ' पंचम' यह नाम वर्णाश्रमी ब्राह्मणोंका दिया हुआ जान पड़ता है । प्राचीन जैनधर्म जन्मतः वर्णव्यवस्थाका विरोधी था, इसलिए उसके अनुयायियों को ब्राह्मणधर्मानुयायी लोग अवहेलना और तुच्छताकी दृष्टि से देखते थे और चातुर्व से बाहर पाँचवे वर्णका अर्थात् 'पंचम' कहते थे । जिस समय जैनधर्मका प्रभाव कम हुआ और उसे राजाश्रय नहीं रहा, उस समय धीरे धीरे यह नाम रूढ होने लगा और अन्ततोगत्वा स्वयं जैनधर्मानुयायियोंने भी इसे स्वीकार कर लिया ! ऐसा जान पड़ता है कि नवी दसवीं शताब्दिके लगभग यह नामकरण हुआ होगा। इसके बाद वीरशैव या लिंगायत सम्प्रदायका उदय हुआ और उसने इन जैनों या पंचमोंको अपने धर्ममें दीक्षित करना शुरू किया। लाखों जैन लिंगायत बन गये; परन्तु लिंगायत हो जानेपर भी उनके पीछे पूर्वोक्त पंचम' विशेषण लगा ही रहा और इस कारण इस समय भी वे 'पंचम लिंगायत' कहलाते हैं । उस समय तक चतुर्थ, शेतवाल आदि जातियाँ नहीं बनी थीं, इस कारण जो लोग जैनधर्म छोड़कर लिंगायत हुए थे, वे 'पंचम लिंगायत' ही कहलाते हैं 'चतुर्थ लिंगायत' आदि नहीं । दक्षिणमें मालगुजार या नम्बरदारको पाटील कहते हैं । वहाँके जिस गाँवमें एक पाटील लिंगायत और दूसरा पाटील जैन होगा, अथवा जिस गाँवमें लिंगायत और जैन दोनोंकी बस्ती होगी, वहाँ लिंगायत पंचम जातिके ही आपको मिलेंगे और जिस गाँवमें पहले जैनोंका प्राबल्य था, वहाँके सभी लिंगायत पंचम होंगे। अनेक गाँव ऐसे हैं, जहाँके जैन पाटीलों और लिंगायत पाटीलोंमें कुछ पीढ़ियोंके पहले परस्पर सूतक तक पाला जाता था। जिस
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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