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________________ ५४२ जैनसाहित्य और इतिहास कल्पित नाम हैं और यों ही गढ़ लिये गये हैं । यह हो सकता है कि बहुत-सी कथायें कल्पित हों, कथायें कल्पित बनानेके लिए कोई रुकावट भी नहीं है, परन्तु केवल इस प्रकारके नामोंसे ही उन्हें कल्पित नहीं कहा जाता सकता । जिस तरह आजकल पति के नामके पूर्व 'मिसिस' या 'श्रीमती' जोड़ देनेसे उसकी पत्नीका बोध होता है, उसी तरह जान पड़ता है पूर्वकालमें भी बहुधा पतिके नामके आगे श्री, दे ( देवी), ही ( ह्री) जोड़ देने या लिंग-परिवर्तन कर देनेसे पत्नीका नाम हो जाता था। प्राचीन लेखों और ग्रन्थ-प्रशस्तियों से इस तरहके बहुत-से उदाहरण दिये जा सकते हैं । जैसे___“ संवत् १७९७ वर्षे श्रावणसुदि १४ शनिवासरे श्रीमूलमंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्कुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्प? भट्टारक श्रीमहेन्द्रकीर्तिस्तदानाये सवाई जयपुरमध्ये श्रीपार्श्वनाथचैत्यालये विलालागोत्र साह श्रीहर ( हीरा ) राम तस्य भार्या हीरादे, तयोः पुत्रः साहश्री सांवलदासजी तस्य भार्या सांवलदे, तयोः पुत्रौ द्वौ प्रथम साह श्री नैणसुखजी तस्य भाया नैणादे, तयोः पुत्रौ द्वौ । चिरंजीवि हितरामजी द्वितीय भागचन्द्रः । सांवलदासस्य द्वितीय पुत्रः साहजी श्रीगोपीरामजी । तस्य भार्य द्वे । एतेषां मध्ये साहजी श्रीगोपीरामजी इदं पुस्तकं पट्कर्मोपदेशरत्नमालानामकं आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिजी तच्छिप्य पंडित गोवर्द्धनदासाय लिखापि ( ?) घटापितं ज्ञानावरणीकर्मक्षयार्थे । श्रीरस्तुकल्याणमस्तु । शुभं भवतुं ।” जयपुर के उक्त भंडारमें ही पांडत जिनदास वैद्यका 'होलीरेणुकापर्वचरित्र' नामका ग्रन्थ ( गठरी ६, नं० १ पत्र ५६, श्लोक ८४३) है, जिसकी प्रशस्तिमें जिनदास वैद्यकी विस्तृत पूर्व-कुलपरम्परा दी हुई है। उसमें फीरोज़शाह, ग्यासुद्दीन और नादिरशाह आदि बादशाहोंके द्वारा सम्मानित पं० हरपति, पद्म, औह और बिंझकी प्रशंसा की गई है और फिर लिखा है कि बिंझके पुत्र धर्मदास वैद्यशिरोमणि थे । इन धर्मदासकी पत्नीका नाम धर्मश्री था— 'धर्मश्रीरिति नामतोऽस्य वनिता देवादिपूजारता।' १ भट्टारक सकलभूषणके इस ग्रंथकी प्रति जयपुरके पाटीदीजीके मंदिरमें ( गठरी न० ८, ग्रन्थ नं० ४, पत्र संख्या १३६, श्लोक संख्या ३५८० ) है । स्व० गुरूजी पं० पन्नालालजी वाकलीवालने जक वे जयपुर में थे, इस प्रशस्तिकी नफार मेरे पास भेजी थी।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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