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________________ तीन महान् ग्रन्थकर्ता ५२३ परम्पराके चिह्न अंकित किये गये और जो ब्राह्मण पंडित लिखनेके अधिकारी थे उन्होंने परम्पराकी पद्धतिसे उन्हें लिख दिया । स्वयं अमोघवर्षके जैन हो जानेसे उनका सारा राज्यतंत्र थोड़े ही जैनधर्मानुयायी हो गया होगा। कलिंग-नरेश खारवेल स्वयं जैनधर्मानुयायी था, फिर भी उसका राज्याभिषेक वैदिक विधिसे हुआ था। इसी तरह सम्राट हर्षके बौद्ध होनेपर भी दान-शासनोंमें उसे परम माहेश्वर और कुमारपालके जैन होनेपर भी उसे परम माहेश्वर लिखा जाता रहा है। एक दलील यह दी जाती है कि यदि अमोघवर्षने जैनधर्म धारण कर लिया था, तो इसका उल्लेख जिनसेनने स्वयं अपने ग्रन्थों में क्यों नहीं किया और उसे अपना शिष्य क्यों न बतलाया ? इसके उत्तरमें हम यह कह सकते हैं कि उस समय तक उन्होंने जैनधर्म धारण न किया होगा, जैनधर्मके प्रति उनकी केवल सहानुभूति ही होगी, रही शिष्य बतलानेकी बात, सो अमोघवर्ष जिनसेनके शिष्य थे, ऐसा तो कोई कहता भी नहीं । हमारा खयाल यही है कि पिछली उम्रमें वे जैनधर्मके अनुयायी हो गये थे । अवश्य ही इसमें जिनसेनपर उनको जो श्रद्धा हो गई थी, उसीने उन्हें इस ओर आकर्षित किया होगा। __ अमोघवर्षके जैन न होनेकी एक दलील यह भी दी जाती है कि उन्होंने 'कविराजमार्ग' नामक अलंकार ग्रन्थकी अवतारिकामें विष्णुकी स्तुति की है। यद्यपि विद्वानोंमें इस विषयपर मतभेद है कि यह ग्रन्थ स्वयं अमोघवर्षका है या उनके किसी दरबारी कविका; परन्तु यदि वह उनका ही हो, तो भी यही कहा जा सकता है कि वह जैनधर्म ग्रहण करने के पहलेकी रचना होगी।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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