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________________ ४९८ जैनसाहित्य और इतिहास शाल्मलि ( सेमर ) आदि वृक्षोके उपवनों या उनके मूलमें रहते थे और शायद उस समय उन्हींके संकेतसे उनके संघों या दलोंका उलख किया जाता था। यह पंचस्तूपान्वय या पंचस्तूप संघ उसी समयका नाम है । किसी जगह कोई पाँच प्रसिद्ध स्तूप होंगे और उन्हींके पास इनका निवास रहा होगा । श्रुतावतारके अनुसार जो पंचस्तूप-निवाससे आये, उन मुनियों में किसीको सेन और किसीको भद्र नाम दिया गया तथा कुछ लोगोंके मतस सेन नाम ही दिया गयाँ । सो यह सेनान्त और भद्रान्त नामवाले मुनियोंका समूह ही पीछे सेनान्वय या सेनसंघ कहलाने लगा होगा। ___ जम्बूस्वामीचरितके की पं० राजमलने-जो कि मुगल-सम्राट अकबरक समकालीन है-लिखा है कि उस समय मथुरामें ५१५ जीर्णस्तूप मौजूद थे और उनका उद्धार टोडर नामके एक धनिक साहुने अगणित द्रव्य व्यय करके कराया था । इससे मालूम होता है कि प्राचीन कालमें जैन-स्तूपोंकी परिपाटी थी और तब वहाँ मुनियों का निवास रहता होगा। गुरु-शिष्य-परम्परा इन आचार्योंकी पूर्व परम्पराका पता हमें आर्य चन्द्रसेन तक मिलता है, उनसे पूर्वका नहीं । चन्द्रसेनके शिष्य आर्य आर्यनन्दि, उनके शिष्य वीरसेन, वीरसेनके शिष्य जिनसेन, उनके शिष्य गुणभद्र और गुणभद्रके शिष्य लोकसेन । आत्मानुशासनके टीकाकार प्रभाचन्द्रने लिखा है कि अपने बड़े धर्म-भाई विषय१-पंचस्तृप्यनिवासादुपागता येऽनगारिणस्तषु । काँश्चित्सेनाभिख्यान्याँश्चिद्भद्राभिधानकरोत् ॥ ९३ ॥ २–अन्ये जगुर्गुहाया विनिर्गता नन्दिनो महात्मानः । देवाश्चाशोकवनात्पंचस्तूप्यास्ततः सेनः ॥ ९७ ॥ ३–वीरसेन और जिनसेनके नाममें तो सेन और गुणभद्रके नाममें भद्र है; परन्तु वीरसेनके दादागुरु आर्यनन्दि थे, इसलिए श्रुतावतारके अनुसार वे पंचस्तूपोंसे नहीं किन्तु गुहासे आये हुए होने चाहिए। ४-देखी, मा० जे० ग्रन्थमालाद्वारा प्रकाशित जम्बूस्वामीचरितका प्रथम सर्ग और सम्पादककी भूमिका ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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