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________________ ४९४ जैनसाहित्य और इतिहास कविका क्षेत्र-ज्ञान मेघदूतके यक्षने प्रेयसीके पास सन्देश भेजने के लिए बादलोंको मार्ग बतलाया है कि तुम अमुक अमुक स्थानोंसे होकर जाओगे; तो उसके समीप पहुँच जाओगे। इस मार्ग-सूचनमें कालिदासने अपने भूगोल-ज्ञानका विलक्षण परिचय दिया है । विद्वानोंने निश्चय किया है कि उनके वर्णनमें देश-स्थानसंबंधी कोई भूल नहीं है। मानो कालिदासने स्वयं पर्यटन करके उक्त सब स्थान और नगरादि देखकर अपना काव्य लिखा था । ___ यही बात नेमिचरितमें भी है । इस कविकी भी इस विषयमें अच्छी जानकारी थी। यद्यपि उसका वर्णित क्षेत्र कालिदासके जितना बड़ा नहीं है; तो भी उसने उसमें पर्यटन किया है और स्वयं आँखों देखे हुए स्थानोंका वर्णन किया है; जिससे मालूम होता है कि कवि काठियावाड़का या उसके आसपासके ही किसी स्थानका रहनेवाला होगा। नीचे उन थोड़ेसे स्थानोंके विषयमें खुलासा किया जाता है जिनका वर्णन नेमिचरितमें आया है (१) रामगिरि (श्लोक १)-मेघदूतका रामगिरि अमरकंटक पर्वत है। परन्तु नेमिचरितके कर्त्ताने यह नाम गिरिनारके लिए दिया है । ऊर्जयन्तगिरि, रैवताद्रि आदि नाम तो गिरिनारके जगह जगह मिलते हैं। पर यह नाम इस काव्यके अतिरिक्त कहीं नहीं देखा गया । संभव है कि कविने मेवदूतके चतुर्थ चरणके वशवी होकर जिसमें कि ' रामगिरि' नाम पड़ा हुआ है-गिरिनारका नाम रामगिरि न होनेपर भी अगत्या मान लिया हो और हमारे देशमें ' राम' शब्द इतना पूज्य है कि उसे किसी भी पूज्य तीर्थके लिए विशेषणरूपमें देना अनुचित भी नहीं कहा जा सकता। (२) द्वारिका (श्लोक १६)-गिरिनारसे द्वारिका वायव्य-कोणमें है। इसलिए इस श्लोकमें कहा है कि द्वारिका जानेके लिए आपको उत्तरकी ओर जाकर फिर पश्चिमको जाना पड़ेगा। (३) वेत्रवती (श्लोक २६)—यह द्वारिकाके प्राकारके पास है । ६४ वें श्लोककी गोमती और यह एक ही मालूम होती है । गोमती अब भी गोमती ही कहलाती है; वेत्रवती या तो इसका दूसरा नाम होगा, या उसमें बेत अधिक होंगे, इसलिए कविने उसका इस अन्वर्थक नामसे उल्लेख किया होगा । मेघदूतके
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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