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________________ ४८६ जैनसाहित्य और इतिहास है कि वि० सं० ११७९ में वाग्भट थे और यह सिद्धराज जयसिंहका ही राज्य-काल है। ___ आचार्य हेमचन्द्रने भी अपने याश्रय काव्य ( सर्ग २० श्लोक ९१-९२ ) में वाग्भटको जयसिंहका अमात्य बतलाया है। वाग्भटालंकारपर जिनवर्द्धनसूरि, सिंहदेवगणि, क्षेमहंस गणि, और राजहंस उपाध्याय इन चार श्वेताम्बर विद्वानोंकी टीकायें उपलब्ध हैं । इनके सिवाय पामराजके पुत्र वादिराज नामक दिगम्बर विद्वानकी और अनन्तभट-सुत गणेश नामक अजैन विद्वानकी भी टीका है। ये वाग्भट श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुयायी थे । यह एक आश्चर्यकी बात है कि अपने ग्रन्थमें नेमिनिर्वाणके अनेक पद्योंका उदाहरणस्वरूप उपयोग करके भी इन्होंने उसके कर्ताका कहीं भूलकर भी स्मरण नहीं किया । ४ काव्यानुशासनके कर्ता वाग्भट—ये नेमिकुमारके पुत्र थे । अपने पिताको इन्होंने कौन्तेयकुलदिवाकर, महान् विद्वान्, धर्मात्मा और यशस्वी लिखा है । उन्होंने मेदपाट ( मेवाड़ ) में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ जिनका यात्रामहोत्सव किया था जिससे उनका यश भुवनव्यापी हो गया था, राहड़पुरमें नेमि भगवानका और नलोटकपुरमें ऋषभ जिनका बाईस देवकुलिकाओंसहित विशाल मन्दिर निर्माण कराया था। नेमिकुमार अपने बड़े भाई राहड़के परम भक्त थे । शतैकादशके साष्टसप्ततौ विक्रमार्कतः । वत्सराणां व्यतिक्रान्ते श्रीमुनिचन्द्रसूरयः ।। आराधनाविधिश्रेष्ठं कृत्वा प्रायोपवेशनं । शमपीयूपकल्लोलप्लुतास्त त्रिदिवं ययुः ।। युग्मम् वत्सरे तत्र चैकेन पूर्णे श्रीदेवसूरिभिः । श्रीवीरस्य प्रतिष्ठां स बाहडोऽकारयन्मुदा ।। १-वाग्भट नामके एक और जैन अमात्य जयसिंहके उत्तराधिकारी कुमारपालके समयमें हुए हैं परन्तु वे उदयनके पुत्र थे । २ राहड़पुर शायद नेमिकुमारके बड़े भाई राहड़का ही बसाया हुआ हो। राहड़पुर और नलोटकपुर मेवाडमें ही कहीं होंगे।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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