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________________ ४८२ जैनसाहित्य और इतिहास तामिल भाषामें 'जीवक-चिन्तामणि' नामका एक प्रसिद्ध काव्य है जिसके कर्त्ता तिरुत्तक्कदेव नामके कवि हैं । तामिल साहित्यके विशेषज्ञ पं० स्वामिनाथय्याका मत है कि इस ग्रन्थकी रचना क्षत्र-चूड़ामणि और गद्य-चिन्तामणिकी छाया लेकर की गई है और श्री कुप्पूस्वामी शास्त्रीने अपने सम्पादित किये हुए क्षत्रचूड़ामणिमें इस तरहके छायामूलक बीसों पद्य टिप्पणके रूपमें उद्धृत करके इस बातकी पुष्टि भी की है। जीवक-चिन्तामणिके बननेका ठीक समय तो मालूम नहीं है परन्तु 'पेरियपुराण' नामक तामिलग्रन्थमें उसका पहले पहल उल्लेख किया गया है जो कि चोल-नरेश कुलोत्तुंगकी प्रार्थनासे शेक्किलार नामक पंडितने बनाया था। कुलोत्तुंगका राज्य-काल वि० सं० ११३७ से ११७५ है, अतएव इससे पहले विक्रमकी बारहवीं सदीके पूर्वार्धमें जीवक-चिन्तामाणि और प्रथम पादमें गद्य-चिन्तामणि रचे गये होंगे। उस समय भोजदेवसम्बन्धी पूर्वोक्त पद्यका अनुकरण भी किया जा सकता है। अतएव जब तक प्राचीनताके और कोई प्रमाण न मिले तब तक ओडयदेवको विक्रमकी बारहवीं सदीके प्रारंभका कवि मानना चाहिए और यह भी कि वे किसी ऐसी गुरुपरम्परामें हुए हैं जिसका हमें पता नहीं । अपने संघ या गणका उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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