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________________ आराधना और उसकी टीकायें मूल ग्रन्थका परिचय नाम - यह एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी भाषा शौरसेनी प्राकृत है। इसमें सब मिलाकर २१७० गाथाएँ हैं। इनमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तपरूप चार आराधनाओंका विवेचन है, इसी कारण इसका नाम ' आराधना' है । यद्यपि यह 'भगवती आराधना' के नामसे अधिक प्रसिद्ध है; परन्तु वास्तवमें ' भगवती' नामका अंश नहीं, उसका एक विशेषण है । यदि नाम होता, तो ' भगवत्याराधना' होता। स्वयं ग्रन्थकर्त्ताने भी मंगलाचरणमें 'आराधना' नाम प्रकट किया है, 'वंदित्ता अरिहंते वुच्छं आराहणा कमसो।' अर्थात् अरहंतोंकी वन्दना करके मैं 'आराधना' कहता हूँ। इसके सिवाय ग्रन्थान्तमें भी कहा है 'आराहणा सिवञ्जण पाणिदलभोइणा रइदा' अर्थात् पाणितलभोजी शिवार्यने 'आराधना' की रचना की । इस ग्रन्थके प्राचीन टीकाकार अपराजितसूरिने भी 'अपराजितसूरिणा...रचिता आराधना-टीका विजयोदया नाम्ना समाप्ता' लिखकर इसका नाम 'आराधना' ही प्रकट किया है । पण्डित आशाधरजीने अपनी टीकाका नाम ' मूलाराधना-दर्पण' लिखा है । इससे भी मूल ग्रन्थका नाम 'आराधना' ही प्रकट होता है । इसी तरह तीसरी टीकाका नाम भी ' आराधना-पंजिका' है ।। मूल ग्रन्थकर्त्ताने एक जगह २१६४ नम्बरकी गाथा ' आराधना' के लिए स्वयं ' भगवती' विशेषण दिया है; परन्तु वह विशेषण ही है, नाम नहीं और आराधनाके बाद दिया है । जान पड़ता है, आगे चलकर पूज्यतावश यही विशेषण नाममें शामिल हो गया है । श्रीअमितगतिसूरिने इस ग्रन्थके संस्कृत अनुवादरूप अपने ग्रन्थको भी आराधना ही कहा है, 'आराधनैषा यदकारि पूर्णा' । हाँ, विशेषण रूपमें अवश्य ही
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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