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________________ महाकवि वादीभसिंह प्रकाशित किये हैं, परन्तु उनमें वे एक भी प्रमाण ऐसा नहीं दे सके हैं जो निःसंशयरूपसे अजितसेनको गद्यचिन्तामणिका कर्त्ता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो । ४७९ एक तो अजितसेनके गुरुका नाम पुष्पसेन नहीं है, और लगभग उसी समयके जिन एक पुष्पसेन मुनिको अजितसेनका गुरु माननेके लिए शास्त्रीजीने आविष्कृत किया है, उनका अजितसेन नामका कोई शिष्य ही नहीं है, बल्कि उनके शिष्यका नाम वासुपूज्य सिद्धान्तदेव है, साथ ही पुष्पसेन और अजितसेनका स्थितिकाल भी दोनोंके गुरु-शिष्य होने में बहुत कुछ बाधक है । दूसरे अजितसेन राजमान्य विद्वान थे, अनेक राजा उनके चरणों में सिर झुकाते थे, परन्तु ओडयदेव या वादीभसिंहके विषय में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है जिसमें उन्हें राजमान्य कहा गया हो । तीसरे अजितसेन के सम्बन्ध में जितने उद्धरण शास्त्रीजीने दिये हैं उनमें से किसी में भी उन्हें महाकवि या काव्य-ग्रन्थोंका कर्त्ता नहीं बतलाया है । यदि वे गद्यचिन्तामणि जैसे श्रेष्ठ काव्य के कर्त्ता होते, तो कमसे कम मलिषेणप्रशस्ति में उनकी इस विशेषताका संकेत अवश्य होता । इस प्रशस्ति में उनकी प्रशंसामें एक दो नहीं ५० पंक्तियों खर्च की गई हैं । उक्त प्रशस्ति और दूसरे उल्लेखोंसे तो वे बड़े भारी वादिविजेता और तार्किक ही मालूम होते हैं, कवि नहीं | इन सब बातोंसे ओडयदेव और अजितसेन एक नहीं हो सकते । दोनों में सिर्फ एक ही समता है और वह यह कि दोनों ' वादीभसिंह ' पदको धारण करनेवाले थे । अकलंकदेवके समकालीन ओडयदेव पं० कैलासचन्द्रजी शास्त्रीने न्यायकुमुदचन्द्र ( प्रथम खंड ) की भूमिका में लिखा है कि मलिषेण प्रशस्ति में जिन पुष्पसेन मुनिको अकलंकदेवका सधर्मा या गुरुभाई बतलाया है, वादीभसिंह उन्हीं के शिष्य प्रतीत होते हैं और लघुसमन्तभद्र के अष्टसहस्री - टिप्पण में जिन वादीभसिहका उल्लेख है वे भी शायद यही हो । 6 १ दखो जैनसिद्धान्त भास्कर भाग ६, अंक २ पृ० ७८-८७ और भाग ७ अंक १ पृ० १-८ २ शास्त्रीजीने गद्यचिन्तामणिकी प्रशस्तिके 'चिरायास्थान - भूषणः ' पदसे शायद यह समझ लिया है कि वे राजमान्य थे । आस्थान-भूषण ' का अर्थ है सभाका भूषण या शोभा और यह विशेषण गद्यचिन्तामणिके लिए दिया गया है, कविके लिए नहीं । कविका सिर्फ इतना ही अभिप्राय है कि यह ग्रन्थ चिरकालके लिए सभाओंका भूषणरूप होकर रहे ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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