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________________ ग्रन्थके प्रारंभी टीकाको भव्यासहित प्रकाशित कालने संस्कृतटीका जिनशतकके टीकाकर्ता कौन हैं ? स्वामी समन्तभद्रका 'जिनशतक' जिसका दूसरा नाम 'स्तुति-विद्या' है, अबसे कोई तीस वर्ष पहले स्वर्गीय गुरुजी पं० पन्नालालजी वाकलीवालने संस्कृतटीका और पं० लालारामजी शास्त्रीकृत भाषानुवादसहित प्रकाशित किया था। उसके टाइटिल पेजपर संस्कृत टीकाको 'भव्योत्तमनरसिंहभट्टकृतव्याख्या' लिखा है । परन्तु ग्रन्थके प्रारंभमें टीकाकर्त्ताकी जो उत्थानिका है, उससे तो यह मालूम होता है कि उक्त टीका नरसिंह भट्टकी नहीं किन्तु वसुनन्दिकी बनाई हुई है । देखिए नमो वृषभनाथाय लोकालोकावलोकिने । मोहपंकविशोषाय भासिने जिनभानवे ॥ १ ॥ समन्तभद्रं सद्बोधं स्तुवे वरगुणालयम् । निर्मलं यद्यशष्कान्तं बभूव भुवनत्रयम् ॥ २ ॥ यस्य च सद्गुणाधारा कृतिरेषा सुपद्मिनी । जिनशतकनामेति योगिनामपि दुष्करा ।। ३ ॥ तस्याः प्रबोधकः कश्चिन्नास्तीति विदुषां मतिः । यावत्तावद्बभूवैको नरसिंहो विभाकरः ॥ ४ ॥ दुर्गमं दुर्गमं काव्यं श्रूयते महतां वचः । नरसिंह पुनः प्राप्य सुगमं सुगमं भवेत् ॥ ५ ॥ स्तुतिविद्यां समाश्रित्य कस्य न क्रमते मतिः । तवृत्तिं येन जाज्ये तु कुरुते वसुनन्द्यपि ।। ६ ।। आश्रयाजायते लोके निःप्रभोऽपि महाद्युतिः। गिरिराजं श्रितः काको धत्ते हि कनकच्छविम् ॥ ७ ॥ पहले पद्यमें भगवान् ऋषभदेवको नमस्कार किया गया है और दूसरेमें समन्तभद्रस्वामीके सद्बोधकी स्तुति की गई है और फिर कहा गया है कि उन्हीं समन्त भद्रकी सद्गुणोंकी आधारभूत यह जिनशतक नामकी रचना योगियोंके लिए भी
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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