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पद्मप्रभ मलधारिदेव भगवान् कुन्दकुन्दके 'नियमसार' की ' तात्पर्यवृत्ति' नामक टीकाके कर्ता पद्मप्रभ मलधारिदेव हैं जो अपनेको सुकविजनपयोजमित्र, पंचेन्द्रियप्रसरवर्जित,
और गात्रमात्रपरिग्रह लिखते हैं । ' मलधारि' विशेषण दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सन्प्रदायके अनेक मुनियों के नामके साथ जुड़ा हुआ पाया जाता है। हमारी समझमें यह शरीरकी स्वच्छता आदिकी ओरसे सर्वथा लापरवाह होनेको सूचित करता है।
पद्मप्रभने अपनी कोई गुरुपरम्परा या संघ गण गच्छ आदिकी सूचना नहीं दी और न ग्रन्थ रचनेका कोई समय ही दिया है। फिर भी हम उन्हें विक्रमकी बारहवीं सदीका अन्त और तेरहवीं सदीके प्रारंभका ग्रन्थकर्ता मानते हैं और इस विषयमें हमें उनके अन्य ग्रन्थोंस लिये हुए उद्धरण और उल्लेख सहायता देते हैं।
१- मुद्रित तात्पर्यवृत्तिके पृ० ५३-७३ और ९९ में ' तथा चोक्तं गुणभद्रस्वामिभिः' कहकर गुणभद्राचार्यके ग्रन्थोके उद्धरण दिये गये हैं और गुणभद्र स्वामिने अपना उत्तरपुराण श० सं० ८२० (वि० सं० ९५५) में समाप्त किया था।
२-पृ० ८३ में 'उक्तं च सोमदेवपण्डितदेवैः' लिखकर यशस्तिलकका एक पद्य उद्धृत किया है जो श० सं० ८८१ ( वि० सं० १०१६ ) में समाप्त हुआ था।
३-पृ० ६० में ' तथाचोक्तं वादिराजदेवैः' लिखकर वादिराजका एक पद्य दिया है और वादिराजका 'पार्श्वनाथचरित' श० सं० ९४७ ( वि० सं० १०८२ ) में समाप्त हुआ था।
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१ जैसे मलधारि गण्डविमुक्तदेव, मलधारि माधवचन्द्र, मलधारि बालचन्द्र, मलधारि मलिपेण आदि दिगम्बर और मलधारि हेमचन्द्र, अभयदेव, जिनभद्र आदि श्वेताम्बर ।