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________________ आचार्य शुभचन्द्र और उनका समय ४४३ समय भी अभी तक अनिर्णीत है, इसलिए वह एक तरहसे निरुपयोगी ही है इतना ही कहा जा सकता है कि शुभचन्द्र अमृतचन्द्र के परवर्ती हैं । एक प्राचीन प्रति पाटण (गुजरात) के खेतरवसी नामक श्वेताम्बर जैन-भण्डारमें (नं० १३) श्रीशुभचन्द्राकार्यकृत ज्ञानार्णवकी वैशाख सुदी १० शुक्रवार संवत् १२९४ की लिखी हुई एक प्राचीन प्रति है, जिसमें १५४२ साइजके २०७ पत्र हैं । उससे ज्ञानार्णवके समयकी उत्तरसीमा निश्चित हो जाती है । उक्त प्रतिके अन्तमें जो कर्ताओंकी लिपि-प्रशस्तियाँ हैं वे अनेक दृष्टियोंसे बड़े महत्वकी हैं, इस लिए उन्हें यहाँ प्रकाशित किया जाता है "इति ज्ञानार्णवे योगप्रदीपाधिकारे पंडिताचार्यश्रीशुभचन्द्रविरचिते मोक्षप्रकरणम्। अस्यां श्रीमन्नृपुर्या श्रीमदहदेवचरणकमलचंचरीकः सुजनजनहृदयपरमानन्दकन्दलीकन्दः श्रीमाथुरान्वयसमुद्रचन्द्रायमानो भव्यात्मा परमश्रावकः श्रीनेमिचन्द्रो नामाभूत । तस्याखिल-विज्ञानकलाकौशल-शालिनी सती पतिव्रतादिगुणगुणालंकार भूषित शरीरा निजमनोवृत्तिरिवाव्यभिचारिणी स्वर्णानाम धर्मपत्नी संजाता । अथ तयोः समासादितधर्मार्थकामफलयोः स्वकुलकुमुदवनचन्द्रलेखा निजवंश वैजयन्ती सर्वलक्षणालंकृतशरीरा जाहिणि-नाम-पुत्रिका समुत्पन्ना । छ । ततो गोकर्ण-श्रीचद्रौ सुतौ जातो मनोरमौ । गुणरत्नाकरौ भव्यौ रामलक्ष्मणसन्निभौ ॥ सा पुत्री नेमिचन्द्रस्य जिनशासनवत्सला । विवेकविनयोपेता सम्यग्दर्शनलांछिता ॥ ज्ञात्वा संसारवैचित्र्यं फल्गुतां च नृजन्मनः । तपसे निरगाद्गेहात् शान्तचित्ता सुसंयता ॥ बान्धवैर्वार्यमाणापि प्रण (य) तैः शास्त्रलोचनैः । मनागपि मनो यस्या न प्रेरणा कश्मलीकृतं । गृहीतं मुनिपादांते तया संयतिकाव्रतं । स्वीकृतं च मनःशुद्धया रत्नत्रयमखंडितम् ।। तया विरक्तयात्यंत नवे वयसि यौवने । आरब्धं तत्तपः कर्तुं यत्सतां साध्विति स्तुतं ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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