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________________ श्रुतसागरसूरि ये मूल संघ, सरस्वती गच्छ, बलात्कार गणमें हुए हैं और इनके गुरुका नाम विद्यानन्दि था । विद्यानन्दि देवेन्द्रकीर्तिके और देवेन्द्रकीर्ति पद्मनन्दिके शिष्य और उत्तराधिकारी थे । विद्यानन्दिके बाद मल्लिभूषण और उनके बाद लक्ष्मीचन्द्र भट्टारक-पदपर आसीन हुए थे । श्रुतसागर शायद गद्दीपर बैठे ही नहीं, फिर भी वे भारी विद्वान् थे । मल्लिभूषणको उन्होंने अपना गुरु भाई लिखा है । विद्यानन्दिका भट्टारक-पट्ट गुजरातमें ही किसी स्थानपर था, परन्तु कहाँपर था, इसका उल्लेख नहीं मिला। श्रुतसागरके भी अनेक शिष्य होंगे जिनमें एक शिष्य श्रीचन्द्र थे जिनकी बनाई हुई वैराग्यमणिमाला उपलब्ध है । आराधनाकथाकोश, नेमिपुराण आदि ग्रन्थोके कर्ता ब्रह्म नेमिदत्तने भी जो मलिभूषणके शिष्य थे-श्रुतसागरको गुरुभावसे स्मरण किया है और मल्लिभूषणकी वही गुरुपरम्परा दी है जो श्रुतसागरके ग्रन्थों में मिलती है । उन्होंने सिंहनन्दिका भी उल्लेख किया है जो मालवाकी गद्दीके भट्टारक थे और जिनकी प्रार्थनासे श्रुतसागरने यशस्तिलककी टीका लिखी थी। श्रुतसागरने अपनेको कलिकालसर्वज्ञ, कलिकालगौतम, उभयभाषाकविचक्रवर्ती, व्याकरणकमलमार्तण्ड, तार्किकशिरोमणि, परमागमप्रवीण, नवनवतिमहामहावादिविजेता, आदि विशेषणोंसे अलंकृत किया है । ये विशेषण उनकी अहम्मन्यताको खूब अच्छी तरह प्रकट करते हैं । वे कट्टर तो थे ही, असहिष्णु भी बहुत ज्यादा थे। अन्य मतोंका खण्डन और विरोध तो औरोंने भी किया है, परन्तु इन्होंने तो खण्डनके साथ बुरी तरह गालियाँ १ये पद्मनन्दि वही मालूम होते हैं जिनके विषयमें कहा जाता है कि गिरिनारपर सरस्वती देवीसे उन्होंने कहला दिया था कि दिगम्बर पन्थ ही सच्चा है। इन्हींकी एक शिष्यशाखामें मकलकीर्ति, भुवनकीर्ति, विजयकीर्ति और शुभचंद्र भट्टारक हुए हैं।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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