SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु ३९३ अन्तिम अंश इह-भारह-पुराणु सुपसिद्धउ मिचरिय-हरिवंसाइद्धउ । वीरजिगसें भवियहो अक्खिउ पच्छई गोयमसामिण रक्खिउ । सोहम्में पुणु जंबूसामें विण्हुकुमार दिग्गयगामें । पंदिमित्त अवरजियणाहे गोवद्धणेण सुभद्दहवाहें। एम परंपराइं अणुलग्गउ आयरियह मुहाउ आवग्गउ । सुणि संखेवसुत्तु अवहारिउ विउसे सयंभे महि वित्थारिउ । पद्धडिया-छंदें सुमणोहरु भवियण-जण-मण-सवण-सुहंकरु । जसपरिसेसिकविहिं जं सुण्णउ ते तिहुवण-सयंभु किउ पुण्ण उ । तासु पुत्ते पिउ-भरणिव्वाहिउ पिय-जसु णिय-जसु भुवणे पसाहिउ ! गय तिहुयणसयंभु सुरठाणहो जं उव्वरिउ कि पि सुणियाणहो । तं जसकित्ति-मुणिहि उद्धरियउ णिएवि सुत्तु हरिवंसच्छरियउ । णिय-गुरु-सिरि-गुणकित्ति-पसाएं कि उ परिपुण्णु मणहो अणुराएं । सरहसेणेदं (?) सेठि-आएसे कुमर-णयरि आवि उ सविसेसें । गोवगिरिहे समीवे विसालए पणियारहे जिणवर-चेयालए । सावयजणहो पुरउ वक्खाणि उ दिड मिच्छत्तु मोहु अवमाणिउ । जं अमुणंतें इह मई साहिउ तं सुयदेवि खमउ अवराहउ । णंदउ सासणु सम्मइणाहहो णंद उ भवियण कय-उच्छाहहो । णंदण णरवइ पय-पालंतहो णंद उ दयधम्मु वि अरहंतहो । कालं वि य णिच्च परिसक्क उ कासु वि धणु कणु दिंतु ण थक्कउ । भद्दवमासि विणासिय-भवकलि हुउ परिपुण्णु चउद्दसि णिम्मलि । घत्ता--इय चउविह संघहं, विहुणिय-विग्घहं, णिण्णासिय-भव-जर-मरणु । जसकित्ति-पयासणु, अखिलय-सासणु, पयडउ संति सयंभु जिणु ॥१७॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-उन्वीरए । तिहुवण-सयंभु-रइए समाणियं कण्हकित्तिहरिवंसं ॥ १ बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वती-भवनकी प्रतिमें यह एक चरण और आगेके तीन चरण अधिक हैं । इससे सम्बन्ध ठीक बैठ जाता है । ये चारों चरण पूनेकी और प्रो० हीरालालजीकी प्रतिमें नहीं है । २ बम्बईकी प्रतिमें यह और आगेकी पंक्ति नहीं है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy