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________________ महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु ज्ञात है, उनमें सबसे पहले महाकवि पुष्पदन्त हैं। पुष्पदन्तने अपना महापुराण वि० स० १०१६ (श० स० ८८१ ) में प्रारंभ किया था। अतएव स्वयंभुके समयकी उत्तर सीमा वि० स० १०१६ है। अर्थात् वे ७३४ से १०१६ के बीच किसी समय हुए हैं । आचार्य हेमचन्द्रने भी अपने छन्दोनुशासनमें स्वयंभुका उल्लेख किया है जो विक्रमकी तेरहवीं सदीके प्रारंभमें हुए हैं। परन्तु यह लगभग तीन सौ वर्षका समय बहुत लम्बा है। हमारा खयाल है कि स्वयंभु रविषेणसे बहुत अधिक बाद नहीं हुए । वे हरिवंशपुराणकर्ता जिनसेनसे कुछ पहले ही हुए होंगे। क्योंकि जिस तरह उन्होंने पउमचरिउमें रविषेणका उल्लेख किया है, उसी तरह रिहणमिचरिउमें हरिवंशके कर्ता जिनसेनका भी उल्लेख अवश्य किया होता, यदि वे उनसे पहले हो गये होते तो। इसी तरह आदिपुराण-उत्तरपुराणके कर्ता जिनसेन-गुणभद्र भी स्वयंभुदेवद्वारा स्मरण किये जाने चाहिए थे। यह बात नहीं जंचती कि वाण, श्रीहर्ष, आदि अजैन कवियों की तो वे चर्चा करते और जिनसेन आदिको छोड़ देते । इससे यही अनुमान होता है कि स्वयंभु दोनों जिनसेनोंसे कुछ पहले हो चुके होंगे । हरिवंशकी रचना वि० स० ८४० (श०सं० ७०५) में समाप्त हुई थी। इसलिए ७३४ से ८४० के बीच स्वयंभुदेवका समय माना जा सकता है । परन्तु इसकी पुष्टि के लिए अभी और भी प्रमाण चाहिए । नीचे दोनों ग्रन्थों के वे सब महत्त्वपूर्ण अंश उद्धृत कर दिये जाते हैं जिनके आधारसे कवियोंका यह परिचय लिखा गया है। १ देखो, निर्णयसागर-प्रेसकी आवृत्ति पत्र १४, पं० १६ ।।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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