SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वनवासी और चैत्यवासी सम्प्रदाय ३६७ कुछ प्रकाश ही पड़ता है। __ बहुत संभव है कि ढूँढको ( स्थानकवासियों) मेंसे निकले हुए तेरह पंथियों के जैसा निन्दित बतलाने के लिए वे लोग जो भट्टारकोंको अपना गुरू मानते थे तथा इनसे द्वेष रखते थे इसके अनुगामियोंको तेरापंथी कहने लगे हों और धीरे धीरे उनका दिया हुआ यह कच्चा 'टाइटल' पक्का हो गया हो; साथ ही वे स्वयं इनसे बड़े बीसपंथी कहलाने लगे हों । यह अनुमान इस लिए भी ठीक जान पड़ता है कि इधरके लगभग सौ डेढ़ सौ वर्षके ही साहित्यमें तेरह पन्थके उल्लेख मिलते हैं, पहलेवे नहीं। अभी तक कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिला है जिससे एक जुदा दल या पन्थके रूपमें इस भट्टारकविरोधी मार्गका अस्तित्व विक्रमकी सत्रहवीं सदीके पहले माना जाय । इस लिए हमारा विश्वास है कि इस दलके मुख्य प्रवर्तक समयसार नाटक आदि ग्रन्थों के सुप्रसिद्ध लेखक और कवि पं० बनारसीदासजी ही थे और इसे उस समय 'बानारसी मत' नाम दिया गया था। श्वेताम्बराचार्य महोपाध्याय मेघविजयने वि० सं० १७५७ के लगभग आगरेमें रहकर ' युक्तिप्रबोध' नामका एक प्राकृत ग्रन्थ स्वोपज्ञसंस्कृतटीकासहित बनाया था। यह ग्रन्थ पं० बनारसीदासजीके मतका खण्डन करने के उद्देश्यसे ही रचा गया था पणमिय वीरजिंणिदं दुम्मयमयमयविमद्दणमयंदं । वुच्छं सुयणहितत्थं वाणारसियस्स मयभयं ॥ १८ ॥ इसमें जगह जगह वाणारसीय या बनारसीदासका मत कहकर उल्लेख किया गया है। इससे भी मालूम होता है कि तब तक यह तेरहपंथ नहीं कहलाता था। ___ दर्शनसारके ढंगपर मेघविजयजीने इसकी उत्पत्तिका समय भी बतलाया है १ लोकाशाहने विक्रम संवत् १५३० के लगभग ढूंढक सम्प्रदायकी और भीखमजीने सं० १८१८ के लगभग तेरह पन्थकी स्थापना की। __ २ मुनि श्रीविद्याविजयजीने अपने एक लेखमें बतलाया है कि भीखमजीके बारह साथी और भी थे जिनका उक्त पन्थकी स्थापनामें हाथ था, इसलिए वह तेरह आदमियोंका चलाया हुआ तेरहपंथ ' कहलाया। ३ श्री ऋषभदेव-केसरीमल श्वेताम्बर-संस्था रतलामद्वारा प्रकाशित ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy