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________________ ३२० जैनसाहित्य और इतिहास सारे लोकमें फैली हुई थी, उन्होंने जिनमन्दिर बनवाये थे, वे जिनचरणोंके भ्रमर थे और जिनपूजामें निरत रहते थे, जिनशासनके उद्धारक थे, मुनियोंको दान देते थे, पापरहित थे, बाहरी और भीतरी शत्रुओंको जीतनेवाले थे, दयावान् , दीनोंके शरण, राजलक्ष्मीके क्रीड़ासरोवर, सरस्वतीके निवास, तमाम विद्वानोंके साथ विद्या-विनोदमें निरत और शुद्धहृदय थे । एक प्रशस्तिपद्यमे पुष्पदन्तने नन्नको उनके पुत्रों सहित प्रसन्न रहनेका आशीर्वाद दिया है। इससे मालूम होता है कि उनके अनेक पुत्र थे । पर उनके नामोका कहीं उल्लेख नहीं है। __ कृष्णराज ( तृतीय ) के तो वे गृहमंत्री थे ही, परन्तु उनकी मृत्युके बाद खोटिंगदेवकें और शायद उनके उत्तराधिकारी कर्क (द्वितीय) के भी वे मंत्री रहे होंगे । क्योंकि यशोधरचरितके अन्तमें कविने लिखा है कि जिस नन्नने बड़े भारी दुष्कालके समय-जब कि सारा जनपद नीरस हो गया था, दुस्सह दुःख व्याप्त हो रहा था, जगह-जगह मनुष्योंकी खोपड़ियाँ और कंकाल फैले पड़े थे, सर्वत्र रंक ही रंक दिखलाई पड़ते थे,-सरस भोजन, सुन्दर वस्त्र और ताम्बूलादिसे मेरी खातिर की, वह चिरायु हो । निश्चय ही मान्यखेटकी लूट और बरवादीके बादकी दुर्दशाका यह चित्र है और तब खाट्टिगदेवकी मृत्यु हो चुकी थी। कविके कुछ परिचित जन पुष्पदन्तने अपने ग्रन्थोंमें भरत और नन्नके सिवाय कुछ और लोगोंका भी जिणसासणायमुद्धारणस्स मुणिदिण्णदाणस्स ।। ३ कलिमलकलंकपरिवजियस्स जियदुविहवइरिणियरस्स ।। कारुण्णकंदणवजलहरस्स, दीणजणसरणस्स ।। ४ ।। णिवलच्छीकीलासरवरस्स, वाएसरिणिवासस्स । णिस्सेसविउसविजाविणोयणिरयस्स सुद्धहिययस्स ।। ५ ।। १ स श्रीमान्निह भूतले सह सुतैर्नन्नाभिधो नन्दतात् । २ जणवयनीरसि, दुरियमलीमसि, कइणिंदायरि, दुसहे दुहयरि पडियकवालइ, गरकंकालइ, बहुरंकालइ अहदुक्कालइ । पवरागारि सरसाहारि सहिं चेलिं, वरतंबोलिं, महु उवयारिउ पुणि पेरिउ गुणभत्तिल्ल उ, णण्णु महल्लउ । होउ चिराउसु...
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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