SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि पुष्पदन्त दूसरी, तीसरी और चौथी सन्धिके प्रारम्भ में नन्नके गुणकीर्तन करनेवाले तीन संस्कृत पद्य हैं'। इस ग्रंथकी कुछ प्रतियों में गन्धर्व कविके बनाये हुए कुछ क्षेपक भी शामिल हो गये हैं जिनकी चर्चा आगे की गई है । इसकी कई सटिप्पण प्रतियाँ भी मिलती हैं । बम्बईके ऐलक पन्नालाल सरस्वती-भवनमें ( ८०४ क ) एक प्रति ऐसी है जिसमें ग्रन्थकी प्रत्येक पंक्तिकी संस्कृतच्छाया दी हुई है जो बहुत ही उपयोगी है । ३१५ उपलब्ध ग्रंथों में महापुराण उनकी पहली रचना है और यशोधरचरित सबसे पिछली रचना | इसकी अन्तिम प्रशस्ति उस समय लिखी गई है जब युद्ध और लूटके कारण मान्यखेटकी दुर्दशा हो गई थी, वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था, लोग भूखों मर रहे थे, जगह जगह नर कंकाल पड़े हुए थे । नागकुमारचरित इससे. पहले बन चुका होगा। क्योंकि उसमें स्पष्ट रूपसे मान्यखेटको 'श्रीकृष्णराजकी तलवारसे दुर्गम ' बतलाया है । अर्थात् उस समय कृष्ण तृतीय जीवित थे । परन्तु यशोधरचरितमें नन्नको केवल 'वल्लभनरेन्द्रगृहमहत्तर विशेषण दिया है और वल्लभनरेन्द्र राष्ट्रकूटोंकी सामान्य पदवी थी । वह खोट्टिगदेव के लिए भी प्रयुक्त हो सकती है और उनके उत्तराधिकारी कर्कके लिए भी । महापुराण श०सं० ८८७ में पूर्ण हुआ था और मान्यखेटकी लूट ८९४ के लगभग हुई । इस लिए इन सात बरसों के बीच कविके द्वारा इन दो छोटे छोटे उपलब्ध ग्रंथोंके सिवाय और भी ग्रंथोंके रचे जानेकी सम्भावना है 1 , कोश -ग्रन्थ | आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी 'देसीनाममाला ' की स्वोपज्ञ वृत्ति में किसी ‘अभिमानचिह्न' नामक ग्रन्थकर्ता के सूत्र और स्वविवृत्तिके पद्य उद्धृत किये हैं। क्या आश्चर्य है जो अभिमानमेरु और अभिमानचिह्न एक ही हो । यद्यपि पुष्पदन्तने प्रायः सर्वत्र ही अपने 'अभिमानमेरु' उपनामका ही उपयोग किया है, फिर भी यशोधरचरित के अन्तमें एक जगह अहिमाणं किं ( अभिमानांक ) या अभिमानचिह्न भी लिखा है । इससे बहुत सम्भव है कि उनका कोई देसी शब्दोंका, कोश ग्रन्थ भी स्वोपज्ञटीकासहित हो जो आचार्य हेमचन्द्र के समक्ष था । २ देखो कारंजा-सीरीजका यशोधरचरित पृ०, २४,४७, और ७५ । १ देखो, देसीनाममाला १-१४४, ६ – ९३, ७-१, ८–१२,१७ । २ देखो यशोधरचरित, पृ० १००, पंक्ति ३ |
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy