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________________ ३०६ जैनसाहित्य और इतिहास राष्ट्रकूटोंकी राजधानी पहले नासिकके पास मयूरखंडीमें थी, जो महाराष्ट्रमें ही है । अतएव राष्ट्र कुट इसी तरफके थे । मान्यखेटको उन्होंने अपनी राजधानी सुदूर दक्षिणके अन्तपिपर शासन करनेकी सुविधाके लिए बनाया था। क्योंकि मान्यखेटमें केन्द्र रख कर ही चोल, चेर, पाण्ड्य देशोंपर ठीक तरहसे शासन किया जा सकता था। भरतको कविने कई जगह भरत भट्ट लिखा है । नाइल्लइ और सीलइय भी भट्ट विशेषणके साथ उल्लिखित हुए हैं । इससे अनुमान होता है कि पुष्पदंतको इन भट्टोंके मान्यखेटमें रइनेका पता होगा और उसी सूत्रसे वे घूमते घामत उस तरफ पहुँचे होंगे। बहुत संभव है कि ये लोग भी पुष्पदन्तक ही प्रान्तके हों और महान् राष्ट्रकूटोंकी सम्पन्न राजधानीमें अपना भाग्य आजमानेके लिए आकर बस गये हों और कालान्तरमें राजमान्य हो गये हों। उस समय बरार भी राष्ट्रकूटोंके अधिकारमें था, अतएव वहाँके लोगोंका आवागमन मान्यखेट तक होना स्वाभाविक है। कमसे कम विद्योपजीवी लोगोंके लिए तो ' पुरन्दरपुरी' मान्यखेटका आकर्षण बहुत ज्यादा रहा होगा। भरत मंत्रीको कविने 'प्राकृतकविकाव्यरसावलुब्ध' कहा है और प्राकृतसे यहाँ उनका मतलब अपभ्रंशसे ही जान पड़ता है। इस भाषाको वे अच्छी तरह जानते होंगे और उसका आनंद ले सकते होंगे, तभी न उन्होंने कविको इतना उत्साहित और सम्मानित किया होगा ? व्यक्तित्व और स्वभाव पुष्पदन्तका एक नाम 'खंडे' था। शायद यह उनका घरू और बोलचालका नाम होगा । महाराष्ट्रमें खंडूजी, खंडोबा नाम अब भी कसरतसे रक्खा १ (क) जो विहिणा णिम्मउ कन्वपिंडु, तं णिसुणे वि सो संचलिउ खंडु । -म० पु० सन्धि १ क० ६ (ख) मुग्धे श्रीमदनिन्द्यखण्डसुकवेर्बन्धुर्गुणैरुन्नतः । -म० पु० सन्धि ३ (ग) वाञ्छन्नित्यमहं कुतूहलवती खण्डस्य कीर्तिः कृतेः । -म० पु० स० ३९
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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