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________________ महाकवि पुष्पदन्त ३०३ हो जब ये शैव थे। जयन्तभट्टने इस स्तोत्रका एक पद्य अपनी न्याय-मंजरीमें 'उक्तं च' रूपसे उद्धृत किया है। यद्यपि अभी तक जयन्तभट्टका ठीक समय निश्चित नहीं हुआ है, इस लिए जोर देकर नहीं कहा जा सकता। फिर भी सम्भावना है कि जयन्त पुष्पदन्तके बादके होंगे और तब शिवमहिम्न इन्हीं पुष्पदन्तका होगा। उनकी रचनाओंसे मालूम होता है कि जैनेतर साहित्यसे उनका प्रगाढ़ परिचय था। उनकी उपमायें और उत्प्रेक्षायें भी इसी बातका संकेत करती हैं। __ अपने ग्रन्थों में उन्होंने इस बातका कोई उल्लेख नहीं किया कि वे कब जैन हुए और कैसे हुए, अपने किसी जैनगुरु और सम्प्रदाय आदिकी भी कोई चर्चा उन्होंने नहीं की, परन्तु खयाल यही होता है कि पहले वे भी अपने माता पिताके ही समान शैव होंगे। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वे माता-पिताके जैन होनेके बाद जैन हुए या पहले । परन्तु इस बातमें सन्देहकी गुंजाइश नहीं है कि वे दृढ़ श्रद्धानी जैन थे। उन्होंने जगह जगह अपनेको 'जिणपयभात्तं धम्मासत्तिं वयसंजुत्तिं उत्तमसत्तिं वियलियसंकिं' अर्थात् जिनपदभक्त, व्रतसंयुक्त, विगलितशंक आदि विशेषण दिये हैं और 'मग्गियपण्डितपडितमरणे' अर्थात् 'पंडित-पण्डितमरण पानेकी तथा बोधिसमाधिकी आकांक्षा प्रकट की है। ___ 'सिद्धान्तशेखर' नामक ज्योतिष ग्रंथके कर्ता श्रीपति भट्ट नागदेवके पुत्र और केशवभटके पौत्र थे । ज्योतिषरत्नमाला, दैवज्ञवल्लभ, जातकपद्धति, गणिततिलक, बीजगणित, श्रीपति-निबंध, श्रीपतिसमुच्चय, श्रीकोटिदकरण, ध्रुवमानसकरण आदि ग्रंथोंके कर्ता भी श्रीपति हैं। वे बड़े भारी ज्योतिषी थे । हमारा अनुमान है कि पुष्पदन्तके पिता केशवभट्ट और श्रीपतिके पितामह केशवभट्ट एक १ बलिजीमूतदधीचिषु सर्वेषु स्वर्गतामुपगतेषु । सम्प्रत्यनन्यगतिकस्त्यागगुणो भरतमावसति ॥ आदि । २ यह ग्रन्थ कलकत्तायूनीवर्सिटीने अभी हाल ही प्रकाशित किया है । ३ गणिततिलक श्रीसिंहतिलकसूरिकृत टीकासहित गायकवाड ओरियण्टल सीरीजमें प्रकाशित हुआ है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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