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________________ महाकवि पुष्पदन्त अपभ्रंश-साहित्य महाकवि पुष्पदन्त अपभ्रंश भाषा के कवि थे । इस भाषाका साहित्य जैनपुस्तक-भंडारोंमें भरा पड़ा है । अपभ्रंश बहुत समय तक यहाँकी लोक भाषा रही है और इसका साहित्य भी बहुत ही लोकप्रिय रहा है । राजदरबारोंमें भी इसकी काफी प्रतिष्ठा थी । राजशेखरकी काव्य-मीमांसासे पता चलता है कि राजसभाओं में राजासनके उत्तरकी ओर संस्कृत कवि, पूर्वकी ओर प्राकृत कवि और पश्चिमकी ओर अपभ्रंश कवियोंको स्थान मिलता था । पिछले २५-३० वर्षों से ही इस भाषा की ओर विद्वानोंका ध्यान आकर्षित हुआ है और अब तो वर्तमान प्रान्तीय भाषाओंकी जननी होने के कारण भाषाशास्त्रियों और भिन्न भिन्न भाषाओं का इतिहास लिखनेवालोंके लिए इस भाषाके साहित्यका अध्ययन बहुत ही आवश्यक हो गया है । इधर इस साहित्य के बहुत-से ग्रन्थ भी प्रकाशित हो गये हैं और हो रहे हैं । कई यूनीवर्सिटियोंने अपने पाठ्यक्रम में भी अपभ्रंश ग्रन्थोंको स्थान देना प्रारंभ कर दिया है । पुष्पदन्त इस भाषा के एक महान् कवि थे । उनकी रचनाओं में जो ओज, जो प्रवाह, जो रस और जो सौन्दर्य है वह अन्यत्र दुर्लभ है । भाषापर उनका असाधारण अधिकार है । उनके शब्दों का भंडार विशाल है और शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनोंसे ही उनकी कविता समृद्ध है । उनकी सरस और सालंकार रचनायें न केवल पढ़ी ही जाती थीं, वे गाई भी जाती थीं और लोग. उन्हें पढ़-सुनकर मुग्ध हो जाते थे । स्थानाभावके कारण रचनाओंके उदाहरण देकर उनकी कला और सुन्दरताकी चर्चा करने से विरत होना पड़ा । कुल - परिचय और धर्म पुष्पदन्त काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे । उनके पिताका नाम केशवभट्ट और
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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