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________________ वादिचन्द्रसूरि २७१ दो ग्रन्थोंका उल्लेख और मिलता है जिनमेंसे पिछला ईडरके पुस्तक भंडारमें है । गुजरातीमें भी इनके अनेक ग्रन्थ होनेका अनुमान किया जाता है। बहुत करके वे गुजरातके ही रहनेवाले थे । ___ वादिचन्दसूरिका एक और ग्रन्थ 'यशोधरचरित' भी है, जिसे उन्होंने अंकलेश्वर (भरोंच ) के चिन्तामणि-मन्दिरमें रहकर वि० सं० १६५७ में पूर्ण किया था। पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारको इस ग्रन्थकी जो प्रति मिली थी वह वि० सं० १६७३ की अर्थात् ग्रन्थ-रचनाके ३६ वर्ष बादकी ही लिखी हुई थी। उक्त प्रति वादिचन्द्र के पट्टपर ही विराजमान होनेवाले महीचन्द्र भट्टारकको एक धर्मात्मा स्त्रीके द्वारा भेट की गई थी। १-तत्पदृविशदख्यातिर्वादिवृन्दमतल्लिका कथामेनां दयासिद्धयै वादिचन्द्रो व्यरीरचत् ।। ८० ॥ अंकलेश्वरसुग्रामे श्रीचिन्तामणिमन्दिरे सप्तपंचरसाब्जांके वर्षेऽकारि सुशास्त्रकम् ॥ ८१ ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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