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________________ जैनसाहित्य और इतिहास परिवार के साथ हेमाचल ( होन्नूरु ) में अपने परिवारसहित जा बसे और दो भाई अन्य स्थानोंको चले गये | चन्द्रपके पुत्र विजयेन्द्र हुए और विजयेन्द्र के ब्रह्मसूरि, जिनके बनाये हुए त्रिवर्णाचार और प्रतिष्ठा - तिलक ग्रन्थ उपलब्ध हैं । २६२ कविके भाई कविके जो पाँच भाई थे, उनसे हम प्रायः अपरिचित हैं । सत्यवाक्यको हस्तिमलने ' श्रीमती कल्याण ' आदि कृतियोंका कर्त्ता बतलाया है, ' परन्तु उनका न तो यह ग्रन्थ ही अभीतक प्राप्त हुआ है और न अन्य कोई ग्रन्थ । नामसे ऐसा मालूम होता है कि श्रीमती कल्याण भी बहुत करके नाटक होगा । श्रीकुमार कविका ' आत्म-प्रबोध' नामका एक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है, परन्तु वे हस्तिमल्लके ही बड़े भाई हैं या कोई और, इसका निर्णय नहीं हो सका । वर्द्धमान कविको कुछ लोगोंने गगरत्नमहोदधिका ही कर्त्ता समझ लिया है परन्तु यह भ्रम है । गणरत्न के कर्त्ता श्वेताम्बर सम्प्रदाय के हैं और उन्होंने सिद्धराज जयसिंह ( वि० सं० ११५१ - १२०० ) की प्रशंसा में कोई काव्य बनाया था | दिगम्बर सम्प्रदायपर उन्होंने कटाक्ष भी किये हैं, और वे हस्तिमलसे बहुत पहले हुए हैं । 3 कविका नाम हस्तिलका असली नाम क्या था, इसका पता नहीं चलता । यह नाम तो उन्हें एक मत्त हाथीको वश में करने के उपलक्ष्य में पाण्ड्य राजाके द्वारा प्राप्त हुआ था । उस समय उनका राजसभा में सैकड़ों प्रशंसा-वाक्योंसे सत्कार किया गया था । १ एवं खल्वसौं श्रीमतीकल्याणप्रभृतीनां कृतीनां कर्त्रा सत्यवाक्येन सूक्तिरसावर्जितचेतसा जायसा कनीयानप्युपश्लोकितः । २ -मैं० ० कल्याण । २ गणरत्नमहोदधिका रचनाकाल वि० सं० १९९७ हैं । ३ अकल्पितप्राणसमासमागमा मलीमसांगा धृतभैश्यवृत्तयः । निर्ग्रन्थतां त्वत्परिपंथिनो गता जगत्पते किंत्वजिनावलम्बिनः || -ग० २० म० पृ० १६४ ४ श्रीवत्स गोत्रजन भूषण गोपभट्ट प्रेमैकधामतनुजो भुवि हस्तियुद्धात् । नाना कलाम्बुनिधिपाण्ड्य महेश्वरेण श्लोकैः शतैस्सदसि सत्कृतवान् बभूव || - विक्रान्त कौरव
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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