SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनसाहित्य और इतिहास पूर्वोक्त पट्टावली में और काष्ठासंघकी पट्टावली में यशोबाहुके स्थान में भद्रबाहु नाम है । जान पड़ता है नन्दिका पूरा नाम विष्णुनन्दि होगा और वही कहीं नन्दि और कहीं विष्णुरूपमें लिख दिया गया है । इसी तरह यशोबाहुका नामान्तर भद्रबाहु होगा । २५६ लोहाचार्य तककी यह गुरुपरम्परा दिगम्बर संप्रदाय में एक-सी मानी जाती है । इसमें कोई मतभेद नहीं है । परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय में जम्बूस्वामी के बाद जो परम्परा मानी जाती है, वह इससे सर्वथा भिन्न है । जंबुदीवपणत्तिका आदि और अंतका कुछ भाग नीचे दिया जाता हैदेवासुरिंदमहिदे दसद्धरूण कम्मपरिहीणे । केवलणाणालोए सद्धम्मुवएस अरुहे || १ अविकम्मरहिए अट्टगुणसमणिदे महावीरे | लोयग्गतिलयभूदे सासयहसंदेि सिद्धे || २ || पंचाचारसमग्गे पंचेंद्रियाणिज्जिदे विगहमोहे | पंचमहव्वयणिलए पंचमगइणायणायरिए || ३ ॥ परसमय तिमिरदलणे परमागमदेसए उवज्झाए । परमगुणरयणणिवहे परमागमभाविदे वीरे ॥ ४ ॥ णाणागुणतवणिरए ससमयसम्भावगाहियपरमत्थे । बहुविजोगज्जुते जे लोए सव्व साहुगणे ॥ ५ ॥ ते वंदिऊण सिरसा वोच्छामि जहाकमेण जिणदिहं । आयरियपरंपरा पणत्तिं दीवजलधीणं ॥ ६ ॥ * * * विउलगिरितुंगसिहरे जिनिंदईदेण वड्ढमाणेण । गोदमणिस्स कहिदं पमाणणयसंजुदं अत्थं ॥ ९ ॥ तेण वि लोहजस्स य लोहजेण य सुधम्मणामेण । गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिहं ॥ १० ॥ चदुर मलबुद्धिसहिदे तिने गणधेर गुणसमग्गे । केवलणाणपईवे सिद्धिं पत्ते णमंसामि ॥ ११ ॥ गंदी य दिमित्तो अवराजिदमुणिवरो महातेओ । गोवणो महप्पा महागुणो भद्दबाहू य || १२ ||
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy