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________________ जंबूदीव पण्णत्ति डॉ० ० ए० एन० उपाध्येके अनुसार इसकी भाषा सौरसेनी प्राकृत है । यह ग्रन्थ गाथाबद्ध है | इसमें १३ उद्देश या अध्याय, २४२७ गाथायें और भरत, ऐरावत, पूर्व विदेह, उत्तर विदेह, देवकुरु, उत्तरकुरु, लवणसमुद्र, ज्योतिषपटल आदिका वर्णन है । वर्णन त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अपेक्षा कुछ संक्षिप्त है । २५३ इसके कर्ताका नाम सिरिप उमगंदि या श्रीपद्मनन्दि है । वे अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार बतलाते हैं -- वरिनन्दि, बलनन्दि, और पद्मनन्दि । अपने लिए उन्होंने गुणगणकलित, त्रिदण्डरहित, त्रिशल्यपरिशुद्ध, त्रिगास्वरहित, सिद्धान्तपारगामी, तप-नियम-योग-युक्त, ज्ञानदर्शनचारित्रयुक्त और आरम्भकरणरहित विशेषण दिये हैं । उन्होंने अपने गुरुओं के भी ज्ञान और तप आदि की प्रशंसा की है । उन्होंने श्रीविजय गुरुके निकट जिनवदनविनिर्गत सुपरिशुद्ध आगमको श्रवण करके, उनके ही कृपामाहात्म्यसे इस ग्रन्थकी रचना की है । वे विजयगुरुका विशेष परिचय नहीं देते, इससे उनकी गुरुपरम्परापर कोई प्रकाश नहीं पड़ता । माघनन्दी नामके एक और विख्यात आचार्य थे जो राग-द्वेष-मोहसे रहित, श्रुतसागर के पारगामी, प्रगल्भ मतिमान्, और तपः संयम संपन्न थे । उनके शिष्य सकलचन्द्र गुरु हुए, जो नियमों और शीलका पालन करते थे, गुणी थे और सिद्धान्त महोदधिमें जिन्होंने अपने पापों को धो डाला था । इन्हीं के शिष्य नेन्दिगुरुके लिए — जो सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र्य सम्पन्न थे - -यह ग्रन्थ बनाया गया । आचार्य पद्मनन्दि जिस समय बारानगर में थे, उस समय यह ग्रन्थ रचा गया है । इस नगरकी प्रशंसा में लिखा है कि उसमें वापिकायें, तालाब, और भुवन बहुत थे, भिन्न भिन्न प्रकारके लोगों से वह भरा हुआ था, बहुत ही रम्य था, धनधान्यसे परिपूर्ण था, सम्यग्दृष्टिजनोंसे, मुनियों के समूहसे, और जैन मंदिरोंसे विभूषित था । यह नगर पारियत्त ( पारियात्र ) नामक देशके अन्तर्गत था । बारा नगरके प्रभु या राजाका नाम शक्ति या शान्ति था । वह सम्यग्दर्शनशुद्ध, व्रती, शीलसम्पन्न, दानी, जिनशासनवत्सल, वीर, गुणी, कलाकुशल और नरपतिसंपूजित था । आचार्य हेमचन्द्रने अपने कोष में लिखा है- -" उत्तरो विन्ध्यात्पारियात्रः अर्थात् विन्ध्याचलके उत्तर में पारियात्र है । यह पारियात्र शब्द पर्वतवाची और प्रदेशवाची भी है । विन्ध्याचलकी पर्वतमालाका पश्चिम भाग जो नर्मदा तटसे शुरू १ पूनेकी प्रतिमें सन्ति (शान्ति) और बम्बई की प्रतीमें सत्ति (शक्ति) पाठ है " 1
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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