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________________ २५० जैनसाहित्य और इतिहास अभयकी देखरेखमें अजित जिनेन्द्रका ऊँचा मन्दिर बनवाया गया है ।" इससे मालूम होता है कि कुमारपाल राजाके समय तक समूचे तारंगा तीर्थपर या कमसे कम सिद्धायिका देवीके मन्दिरपर दिगम्बरियोंका अधिकार था। तारंगा पर्वतकी कोटि-शिलापर एक वेदी है। उसकी एक प्रतिमापर अब भी संवत् ११९० की वैशाख सुदी ९ का सिद्धराज जयसिंहके समयका लेख है जिससे मालूम होता है कि उस समय, अर्थात् कुमारपाल महाराजके मन्दिरनिर्माणके पहले, वहाँपर दिगम्बरियों के मन्दिर और प्रतिमाएँ थीं और कुमारपालप्रतिबोधके कथनानुसार सम्भव है कि पर्वतपर दिगम्बरियोंका ही अधिकार हो । इसी तरह पावागढ़पर इस समय सम्पूर्ण अधिकार दिगम्बरियोंका है; परन्तु पर्वतके ऊपर कई ऐस मन्दिरोंके खण्डहर पड़े हुए हैं जो श्वेताम्बर सम्प्रदायके हैं और किसी समय उक्त पावागढ़ श्वेताम्बर सम्प्रदायका भी प्रसिद्ध तीर्थ था । वहाँ सुप्रसिद्ध मंत्री तेजपालका बनवाया हुआ 'सर्वतोभद्र' नामका एक विशाल मन्दिर था। कदम्बवंशी राजाओंके जो ताम्रपत्र प्रकाशित हुए हैं, उनमेंसे दूसरे ताम्रपत्र में श्वेताम्बर महाश्रमणसंघ और दिगम्बर महाश्रमणसंघके उपभोगके लिए कालवङ्ग नामक ग्रामके देनेका उल्लेख है। यह स्थान कर्नाटक प्रदेशमें धारवाड़ जिलेके आसपास कहींपर है । अवश्य ही उस समय वहाँपर कोई श्वेताम्बर संघका भी स्थान तीर्थादि होगा । परन्तु बहुत समयसे उस ओर श्वेताम्बरी भाइयोंका एक तरहसे अभाव ही है, इस कारण उक्त स्थान या तो नष्ट-भ्रष्ट हो गया होगा या दिगम्बरियोंके अधिकारमें होगा। १-कुमारपाल महाराजका यह विशाल मन्दिर अब भी वर्तमान है । २-ताराइ बुद्धदेवीइ मंदिरं, तेण कारियं पुत्वं । आसन्नगिरम्मि तओ, भन्नइ ताराउरं ति इमो ॥ तेणेव तत्थ पच्छा, भवणं सिद्धाइयाइ कारवियं । तं पुण कालवसेण, दियंवरेहिं परिग्गहियं ।। तत्थ ममाएसेणं, अजियजिणिंदस्स मंदिरं तुंगं । दंडाहिवअभएणं जसदेवसुएण निम्मवियं ।। ३-देखो जैनमित्र भाग २२, अंक १२ । ४-इन ताम्रपत्रोंका विवरण देखी जैनहितैषी भाग १४, अंक ७-८ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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