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________________ तोिंके झगड़ोंपर ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार २४५ तीर्थ-यात्रा, पूजनार्चा आदि कार्यों में दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में इतनी विभिन्नता नहीं थी, जितनी कि अब है और इसी कारण इस संघमें श्वेताम्बरियोंके साथ ११०० दिगम्बर भी गये थे । दोनोंमें आजकलके समान वैर-भाव नहीं था और दिगम्बर-श्वेताम्बरोंकी मूर्तियों में भी कोई अन्तर नहीं था । यदि अन्तर होता तो वस्तुपालने दिगम्बरियों के लिए दिगम्बर देवालयोंकी भी व्यवस्था की होती और उनकी भी संख्या दी होती । जब कि दोनोंके तीर्थ एक थे, एक ही तरहकी मूर्तियोंको पूजते थे, तब यह स्वाभाविक है कि तीर्थ यात्राके संघ निकालनेवाले दोनोंको साथ लेकर चले। १० -- जान पड़ता है, गिरिनार पर्वतपर दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंके वह विवाद कभी न कभी अवश्य हुआ है जिसका उल्लेख धर्मसागर उपाध्यायने किया है । यह कोई ऐतिहासिक घटना अवश्य है; क्योंकि इसका उल्लेख दिगम्बर साहित्यमें भी एक दूसरे ही रूपमें मिलता है । नन्दिसंघकी गुर्वावलीमें लिखा है पद्मनन्दी गुरुर्जातो बलात्कारगणाग्रणी । पाषाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ।। ३६ ॥ उजयन्तगिरौ तेन गच्छः सारस्वता भवेत् । अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्रीपद्मनन्दिने ॥ ३७ ।। और भी कई जगहे इस घटनाका जिक्र है कि गिरनारपर दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंका शास्त्रार्थ हुआ था और उसमें सरस्वतीकी मूर्ति से ये शब्द निकलनेसे कि सत्य मार्ग दिगम्बरोंका है, श्वेताम्बर पराजित हो गये थे। इस सरस्वतीकी मूर्तिको वाचाल करनेवाले पद्मनन्दि भट्टारक थे जिनका समय उक्त गुर्वावलीमें विक्रम संवत् १३८५ से १४५० लिखा है । इनके शिष्य शुभचन्द्र और १-आचार्य कुन्दकुन्दका भी एक नाम पद्मनन्दि है; अतएव पीछेके लेखकोंने इस शास्त्रार्थ और विजयका मुकुट कुन्दकुन्दको भी पहना दिया है। परन्तु यह बड़ा भारी भ्रम है । ये पद्मनन्दि १४ वीं शताब्दिके एक भट्टारक हैं । २-कविवर वृन्दावनजीने लिखा है सघसहित श्रीकुन्दकुन्द गुरु, बन्दन हेत गए गिरनार, वाद परयौ तहँ संशयमतिसों, साखी बदी अबिकाकार । 'सत्यपन्थ निग्रंथ दिगम्बर' कही सुरी तहँ प्रगट पुकार, सो गुरुदेव बसौ उर मेरे, विघन हरन मंगल-करतार ।।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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