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________________ तीर्थोके झगड़ोंपर ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार २४३ लुण्ठितैरिव भूत्वा च फलं कि तीर्थवालने । इमं न हि समादाय शैलेशं यास्यते गृहे ॥ अर्थात् इस तरह लुटकर तीर्थ लेनेसे क्या लाभ होगा ? क्या इस पर्वतराजको उठाकर घर ले चलना है ? अन्तमें पूर्णचन्द्र जीने कह दिया कि आप ही माला पहन लीजिए । इससे दिगम्बरी मुरझा गये और अपना-सा मुँह लिये यात्रा करके नीचे उतर गये ।” __यह कथा यद्यपि श्वेताम्बरियोंकी धनाढयता, उदारता और गिरिनारपर श्वेताबराधिकार सिद्ध करनेके मुख्य अभिप्रायसे लिखी गई है, तो भी इसमें बहुत कुछ ऐतिहासिक सत्य जान पड़ता है; और यह बात अनायास ही सिद्ध हो जाती है कि उस समय दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों एक ही मन्दिर में उपासना करते थे और इन्द्रमालाकी बोली दोनोंके समूहके बीच बोली जाती थी। इसके सिवा यह भी मालूम होता है कि उस समय गिरिनारकी मूलनायक नेमिनाथकी प्रतिमा आभूषणोंसे सुसजित और कटि-सूत्र तथा अंचलिकासे भी लांछित नहीं थी। इसी तरह उदाहरणके तौर पर जो फलोधी तीर्थकी प्रतिमाओंके विषयमें कहा है कि वहाँका प्रतिमाधिष्ठित देव भूषणापहारक है, सो जान पड़ता है कि वहाँ भी उस समय ( कमसे कम रत्नमंडन गणिके समयमें) प्रतिमाओंको आभूषणादि नहीं पहनाये जाते थे । वीतराग प्रतिमाओंकी ये सब बिडम्बनाएँ बहुत पीछे की गई हैं। ८-श्रीरत्नमन्दिरगणिकृत उपदेश-तरंगिणी (पृ० १४८ ) में लिखा है-- __सुराष्ट्र देशके गोमण्डल ( गोंडल ) नामक गाँवके निवासी धाराक नामके संघपति थे। उनके ७ पुत्र, ७०० योद्धा, १३०० गाड़ियाँ और १३ करोड़ अशर्फियाँ थीं। वे शत्रुजयकी यात्रा करके जब गिरनार तीर्थकी यात्राको गये जो कि ५० वर्षसे दिगम्बरोंके अधिकारमें था, तब वहाँ उन्हें खङ्गार नामक किलेदारसे लड़ना पड़ा और उसमें उनके सातों पुत्र और सारे योद्धा मारे गये । उसी समय जब उन्होंने सुना कि गोपगिरि अर्थात् ग्वालियर के राजा आम हैं और उन्हें वप्पट्टि नामक श्वेताम्बराचार्यने प्रतिबोधित कर रक्खा है, तब वे ग्वालियर आये। उस समय वप्पभट्टिका व्याख्यान हो रहा था। स्वयं राजा और आठ श्रावक बैठे सुन रहे थे । धाराकने दिगम्बराधिकृत गिरनार तीर्थकी हालत सुनाई । गुरुने भी तीर्थकी महिमाका वर्णन किया । इसपर आम राजा प्रतिज्ञा कर बैठे कि गिरनारके नेमिनाथकी वन्दना किये बिना मैं भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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