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________________ २३४ जैनसाहित्य और इतिहास कनकगिरी ज्वालामालिनी, देवी चन्द्रप्रभस्वामिनी । आगे शीलविजय कावेरी नदीको पार करके मलयाचलमें संचार करते हैं और और अजनगिरि स्थानमें विश्राम लेकर शान्तिनाथको प्रणाम करते हैं । वहाँ चन्दनके वन हैं, हाथी बहुत होते हैं और भारी-भारी सुन्दर वृक्ष हैं । फिर घाट उतरकर कालिकट बन्दर पहुँचते हैं जहाँ श्वेताम्बर मन्दिर हैं और गुजर (गुजराती) व्यापारी रहते हैं। वहाँसे सौ कोसपर सुभरमणी नामका ग्राम है। वहाँके संभवनाथको प्रणाम करता हूँ। फिर गोम्मटस्वामीपुर है, जहाँ सात धनुषकी प्रतिमा है । यहाँसे आगे जैनोंका राज्य है । पाँच स्थानों में अब भी है। तुलै ( तुलव ) देशका बड़ा विस्तार है, लोग जिनाज्ञाके अनुसार आचार पालते हैं। __ आगे बदरी नगरी या मूडबिद्रीका वर्णन है। यह नगरी अनुपम है, इसमें उन्नीस मन्दिर हैं । उनमें बड़े-बड़े मंडप हैं, पुरुष-प्रमाण प्रतिमायें हैं । वे सोनेकी हैं और बहुत सुन्दर हैं । चन्द्रप्रभ, आदीश्वर, शान्तीश्वर, पार्श्वके मन्दिर हैं जिनकी श्रावकजन सेवा करते हैं। जिनमती स्त्री राज्य करती है। दिगम्बर साधु हैं। -- - - १- यह अंजनगिरि कुर्ग ( कोडगु ) राज्यमें है। इस समय भी वहाँ शान्तिनाथका एक कनडीमिश्रित संस्कृत शिलालेख मिला है, जिसमें लिखा है कि अभिनव चारुकीर्ति पंडितने अंजनगिरिकी शान्तिनाथबस्तीके दर्शन किये और सुवर्णनदीमें पाई हुई शान्तिनाथ और अनन्तनाथकी मूर्तियोंको विराजमान किया। २-सुभरमणी शायद ' सुब्रह्मण्य ' का अपभ्रंश है । यह हिन्दुओंका तीर्थ है । यह तुलुदेशके किनारे पश्चिम घाटके नीचे विद्यमान है। ३-गोम्मटस्वामीपुर शायद वही है जो मैसूरसे पश्चिमकी ओर १६ मीलकी दूरीपर जंगलमें है और जहाँ गोम्मटस्वामीकी १५ हाथ ऊँची प्रतिमा है। ४-यात्रीके कथनानुसार उस समय तुलुदेशमें कई छोटे छोटे राज्य थे । जैसे अजिल, चौट, बंग, मुल आदि । ५-दक्षिण कनाड़ा जिला तुलुदेश कहलाता है। अब सिर्फ वहींपर तुल भाषा बोली जाती है। पहले उत्तर कनाडाका भी कुछ हिस्सा तुलु देशमें गर्भित था। शीलविजयजी के समय तक भी तुलु देशमें कई जैन राजा थे। कारकलके राजा भैररस ओडियरने जो गोम्मटदेवीके पुत्र थे ई० स० १५८८ से १५९८ तक राज्य किया है । ये जैन थे।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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