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________________ जैनसाहित्य और इतिहास गई हैं। ये मूर्तियाँ बहुत करके श्वेताम्बर सम्प्रदायकी हैं, क्योंकि उनमें लंगोटका चिह्न दिखाई देता है | २२२ " यद्यपि इस समय पर्वतपर कोई श्वेताम्बर मन्दिर नहीं है और श्वेताम्बर - सम्प्रदाय के यात्री भी यहाँ नहीं आते हैं, तो भी मालूम होता है कि यहाँ पर पहले श्वेताम्बर - मन्दिर अवश्य रहे होंगे और ये प्रतिमायें उन्हीं मन्दिरोंकी होंगीं । पावागिरिको श्वेताम्बर - सम्प्रदाय में मालूम नहीं कि सिद्धक्षेत्र माना है या नहीं । "" इतने समय के बाद नाहटाजी और पं० लालचन्दजी गाँधी की कृपासे यह मालूम हुआ कि पावागढ़ सिद्धक्षेत्र न होनेपर भी श्वेताम्बर - सम्प्रदायका बहुत विख्यात तीर्थ रहा है और अब काल - माहात्म्य से बिल्कुल शेष हो चुका है । खण्डहरों की दुर्दशाका पार नहीं रहता । वहाँ के कीमती से कीमती शिल्प-कला पूर्ण पाषाणों का उपयोग लोग ऐसी बेदर्दी के साथ करते है कि देखकर जी रो उठता है। पावागढ़ के मन्दिरोंके अवशेषका जिस तरह सीढ़ियों में उपयोग हुआ है उसी तरह और न जाने किन किन काम में हुआ होगा । उपयोग करनेवालों की नजर में तो वे एक मामूली पत्थर से ज्यादा महत्त्व नहीं रखते । ऐसा मालूम होता है कि दिगम्बर श्वेताम्बर मन्दिरोंके साथ-साथ पावागढ़पर हिन्दू मन्दिर भी रहे होंगे और उनकी गणेशकी मूर्तियों का उपयोग जैन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करानेवालाने भी किया है । यह सम्भव है कि दिगम्बर जैन - मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करानेवालोंने श्वेताम्बर मन्दिरके पत्थरोंका भी उपयोग किया हो । परन्तु यह निश्चय है कि श्वेताम्बरप्रतिमाओं का उपयोग न किया होगा, क्योंकि श्वेताम्बर - प्रतिमाएँ सहजमें ही दिगम्बर नहीं बनाई जा सकतीं ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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