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________________ सुहृद्वर प्रो० हीरालाल जीने भी अनेक प्रूफोंका संशोधन करके, जयधवला, गणितसारसंग्रह आदिकी प्रशस्तियाँ भेजकर तथा अनेक प्रश्नोंका उत्तर देकर बहुत सहायता दी है। वास्तवमें इन दोनों विद्वान् मित्रों के सौजन्य, आग्रह और सहयोगसे ही यह संग्रह प्रकाशित हो सका है और इस तरह दोनोंने ही मुझे सदाके लिए अपना ऋणी बना लिया है। 'जैन गुर्जरकविओ' और ' जैन-साहित्यनो इतिहास' के लेखक श्री मोहनलाल दलीचन्दजी देसाई बी० ए० एल एल० बी० ने अपने विशाल संग्रहके अनेक ग्रन्थ मुझे उपयोग करनेके लिए दिये हैं और पं० रामप्रसादजी शास्त्रीने ऐ०५० सरस्वती-भवनके बीसों ग्रन्थोंका उपयोग करने दिया है, इसके लिए उक्त दोनों महाशयोंका भी मैं बहुत कृतज्ञ हूँ। __पं० हीरालालजी शास्त्री, पं० फूलचन्दजी शास्त्री, साहित्याचार्य पं० राजकुमार शास्त्रीने भी अनेक सूचनायें देनेकी कृपा की है। इनके सिवाय जिन जिन सजनोंके लेखों और ग्रन्थोंसे सहायता ली है, उनका उल्लेख यथास्थान कर दिया गया है। उन सब सजनोंका भी मैं हृदयसे कृतज्ञ हूँ। मेरे पुत्र आयुष्मान् हेमचन्द्र मोदीने अनेक अंग्रेजी लेखों और उद्धरणोंका अनुवाद करने और अनेक लेखोंको सुव्यवस्थित करनेमें सहायता दी है । । बम्बई २०-३-४२ नाथूराम प्रेमी
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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