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________________ २२० जैनसाहित्य और इतिहास रिसहो जिणेसहा तहि चेईहरु, तुंगु सहासोहिउ णं ससहरु । दंसणेण जसु दुरिउ विलिजइ, पुष्णहेउ जं जणि मणिजइ ॥ अर्थात् वहाँ ऋषभ-जिनेशका ऊँचा, सभासे शोभित और चन्द्रमा जैसा 'चैत्यगृह ' था जिसके दर्शनसे पाप विलीयमान हो जाते हैं और जिसे लोग पुण्यका हेतु मानते हैं । गोधरा के जिस राजा घूघुलको तेजपाल मंत्रीने पराजित किया था वह सम्भवतः अमरकीर्तिलिखित चालुक्य कृष्णराजका ही उत्तराधिकारी था । इस विजय के बाद ही तेजपाल ने गोधरा में अजितनाथका मन्दिर निर्माण कराया था और फिर उसके बाद पावागढ़ जाकर सर्वतोभद्र । जिस समय मंत्री तेजपालने गोधरा में श्वेताम्बरमन्दिर निर्माण कराया उस समय जिस तरह वहाँ ऋषभ जिनेशका दिगम्बर- मन्दिर मौजूद था उसी तरह क्या यह असम्भव है कि पावागढ़ में भी सर्वतोभद्र जिनालय - के पहले कोई दिगम्बर- मन्दिर रहा हो ? खासकरके पाँचवें फाटकके बादकी उस भीत में उत्कीर्ण सं० ११३४ की प्रतिमाका खयाल रखते हुए । जब पावागढ़ की तलैटीका विशाल नगर चाँपानेर बरबाद हो गया, अनेक राजनीतिक उथल-पुथल होनेके कारण जब वहाँ कोई न रहा, तब यह स्वाभाविक है कि वहाँके मन्दिर खण्डहरों में परिणत हो जायँ और कुछ लोग प्रतिमा - ओं को भी अपने साथ ले जायँ । श्वेताम्बरोंके समान दिगम्बरोंने भी यही किया होगा | गरज यह कि पावागढ़ को उस समय दोनोंने ही छोड़ दिया होगा और मन्दिर दोनों के पड़े रहे होंगे । इसके बाद ऐसा जान पड़ता है कि श्वेताम्बर भाइयोंने तो उक्त स्थानको बिलकुल भुला दिया, परन्तु दिगम्बर नहीं भूले और वि० सं० १९३७ में भट्टारक कनककीर्तिकी दृष्टि इस ओर गई और उनके उपदेश से दिगम्बर मन्दिरों के उद्धारका प्रारम्भ हो गया । बहुत करके कनककीर्तिजी ईंडरकी गद्दी के भट्टारक थे । अबसे लगभग २७ वर्ष पहले सन् १९१२ के मार्च महीने के अन्तमें मैंने पावागढ़ की यात्रा की थी और अपनी उस यात्राका विवरण जैनहितैषी ( भाग ९, अं० १२ ) में प्रकाशित किया था । उसके नीचे लिखे अंशको पढ़कर पाठक देख सकते हैं कि उस समय भी मुझे यह भास हुआ था कि उक्त स्थानपर पहले श्वेताम्बर मन्दिर रहे होंगे और इस बात को मैंने छुपाया नहीं था । " छासिया तालाब के मार्ग में दाहिनी ओर एक जैन मन्दिर है । इसकी नये
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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