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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र २११ बननेसे इस तुङ्ग पर्वतका नाम रामगिरि प्रसिद्ध हुआ है'। वंशस्थलपुरमें रहते रहते ऊब जानेसे रामचन्द्र लक्ष्मणसे आगे कहीं स्थान बनाकर रहनेको कहते हैं । इस प्रसंगमें कहा है कि कर्णरवा नदीके आगे सुनते हैं कि रोमांचित करनेवाला दण्डकारण्य है जो भूमिगोचरियोंके लिए दुर्गम है। रामगिरिसे चल कर दक्षिणांभाधि देखा और जानकीके कारण कोस-कोस चलकर दोनों भाई कर्णरवा नदीपर पहुँचे । इस सब वर्णनसे कुन्थुगिरि इस समय जहाँ माना जाता है वहाँ नहीं होना चाहिए । क्योंकि वर्तमान कुन्थुगिरिके आगे दण्डकारण्य नहीं हो सकता। पद्मपुराणके उक्त रामगिरिका वर्णन हरिवंशपुराणमें भी है कि वहाँ कुछ दिन आरामसे रहकर वे पुरुषश्रेष्ठ ( पांडव) कौशल देशमें पहुँचे और वहाँ भी कुछ महीने रह कर रामगिरि गये जो पूर्वकालमें रामलक्ष्मण-द्वारा सेवित था और जहाँ पर्वतपर रामचन्द्रने सैकड़ों चैत्यालय बनवाये थे। ___ यह कौशल दक्षिण कौशल या महाकौशल होगा जो गोदावरी और महानदीके बीच पूर्वकी ओर है । आधुनिक छत्तीसगढ़ महाकौशलमें ही है । रामचन्द्र भी चित्रकूटसे चल कर इसी महाकौशलमें आये होंगे । इसके आगे ही दंडकारण्य शुरू होता है। चीनी यात्री हुएनत्सांग कलिंगकी राजधानीसे तीन सौ मील चल कर कौशल राजमें पहुंचा था। उसने इस राज्यका घेरा एक हजार मील बताया है। १--रामेण यस्मात्परमाणि तस्मिन् जैनानि वेश्मानि विधापितानि । निर्नष्टवंशाद्रिवचः स तस्माद्रविप्रभो रामगिरिः प्रसिद्धः ॥ ४५ ॥ २-~-नद्याः कर्णरवायास्तु परतो रोमहर्षणं । श्रूयते दण्डकारण्यं दुर्गमं क्षितिचारिभिः ॥ ४० ॥ -विश्रम्य तत्र ते सौम्या दिनानि कतिचित्सुखं । याताः क्रमेण पुन्नागविषयं कौशलाभिषं ॥ १७ ॥ स्थित्वा तत्रापि सौख्येन मासान्कतिपयानपि । प्राप्ता रामगिरि प्राग्यो रामलक्ष्मणसेवितः ॥ १८ ॥ चैत्यालया जिनेन्द्राणां यत्र चन्द्रार्कभासुराः। कारिता रामदेवेन संभाति शतशो गिरौ ॥ १९॥ सर्ग ४६ ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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