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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र ९७ विदुषा शिवजिद्रक्तनामधेयेन मोहनप्रेम्णा यात्राप्रसिद्धयर्थं चैकाह्निरचितं चिरं ॥ २२ ॥ जीयादिदं पूजनं च विश्वभूषणवद्धृवं । तस्यानुसारतो ज्ञेयं न च बुद्धिकृतं त्विदं ॥ २३॥ इत्याशीर्वादः इति नागारपट्टविराजमानश्रीभट्टारकक्षेमेन्द्रकीर्तिविरचितं गजपंथमंडलपूजनविधानं समाप्तम्। संवत् १९३९माघशुक्लपंचमी सोमवासरे कोपरग्रामप्रतिष्ठायां समाप्तमिदम्।" अर्थात् हेमकीर्तिके पट्टके उत्तराधिकारी भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्तिकी आज्ञासे यह गजपंथ मंडल पूजन रचा गया । इसे पं० शिवजीलालने, मोहनके प्रेमसे, यात्राकी प्रसिद्धिके लिए-अर्थात् लोग इस तीर्थको जान जाय और यात्राको आने लगें-केवल एक दिनमें बनाया । यह पूजन विश्व-भूषणके समान चिरंजीवी हो । यह उसीके अनुसार है, अपनी बुद्धिकृत नहीं है। ___ इस तरह इसके कर्ता पं० शिवजीलाल हैं; परंतु चूँकि वे तो आज्ञाकारी मात्र थे, इसीलिए अन्तमें यह भी लिख गये कि यह भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति-विरचित है ! कोपरगाँव ( जिला अहमदनगर ) की प्रतिष्ठाके अवसरपर सं० १९३९ में भट्टारकजीने पण्डितजीको बुलवाया होगा और उसी समय उनसे यह काम करा लिया होगा। पं० शिवजीलाल जयपुरके भट्टारकानुयायी पण्डित थे । उनका स्वर्गवास हुए बहुत अधिक वर्ष नहीं हुए हैं । उन्होंने संस्कृत और भाषामें अनेक ग्रन्थोंकी रचना की थी। चर्चासंग्रह, तेरहपंथ-खण्डन, रत्नकरण्डकी वचनिका आदि उनके ...... __ _ ..... ..... १-उक्त प्रशस्तिका ‘विश्वभूषणवत्' पद श्लिष्ट मालूम होता है । शायद इसमें सोनागिरिकी गद्दीके भट्टारक विश्वभूषणका संकेत हो जो जगद्भूषणके शिष्य थे और संवत् १७२२ के लगभग मौजूद थे। ग्रन्थ सूचियोंमें उनके 'मांगीतुङ्गी-पूजन-विधान'का नाम मिलता हैं। शायद यह मण्डल-विधान उसीके ढङ्गपर उसीके अनुसार बनाया गया हो। पूरा निश्चय तो माँगीतुङ्गी-पूजनके मिलनेपर ही हो सकता है। जैनसिद्धान्तमास्कर वर्ष २, किरण १ के प्रतिमालेख-संग्रहमें एक 'सम्यग्दर्शनयंत्र'का उल्लेख है जो संवत् १७२२ का विश्वभूषणकी आम्नायके एक गृहस्थका दिया हुआ है और मैनपुरीके मन्दिरकी अजितनाथकी प्रतिमा सं० १६८८ में जगद्भूषण भट्टारकद्वारा प्रतिष्ठित है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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