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________________ आचार्य अमितगति १७९ गति होनेके अनुमानको सहारा देता है । यह जैनसिद्धान्त-प्रकाशिनी संस्था-द्वारा हिन्दी-अनुवाद-सहित प्रकाशित हो चुका है ।। कुछ ग्रन्थ-सूचियोंमें जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सार्द्धद्वयद्वीपप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति इन चार ग्रन्थोंको और भी अमितगति-कृत बतलाया है । परन्तु अभी तक ये कहीं उपलब्ध नहीं हुए हैं। उपलब्ध ग्रन्थोंमें सुभाषितरत्नसन्दोह वि० सं० १०५० की रचना है। इसके पहलेकी किसी रचनाका हमें पता नहीं । यह ग्रन्थ काफी प्रौढ़ है । अधिक नहीं तो उस समय ग्रन्थकर्ताकी अवस्था २५-३० वर्षकी अवश्य होगी। इस दृष्टिसे हम श्रीअमितगतिका जन्म-काल वि० सं० १०२० के लगभग मान सकते हैं । पंच-संग्रह वि० संवत् १०७३ में समाप्त हुआ है, अतएव उस समय वे ५० वर्षसे ऊपर होंगे। समकालीन राजा अपने ग्रन्थोंमें उन्होंने मुंज और सिन्धुलका उल्लेख किया है। ये दोनों मालवेके परमार राजा थे और उनकी राजधानी धारा थी। ये मुंज वही हैं, जिनके विषयमें कहा गया है कि यशःपुंज मुंजराजाके चले जानेपर लक्ष्मी तो विष्णुके पास चली जायगी और वीरश्री वीरोंके घर, परन्तु सरस्वती बिल्कुल निरावलम्ब हो जायगी-उसका कोई आश्रयदाता न रहेगा। मुंज सरस्वती और सरस्वती-सेवकोंके ऐसे ही आश्रयदाता थे । उनका दूसरा नाम वाक्पतिराज थौ । वे स्वयं भी विद्वान् और कवि थे । उनका बनाया हुआ कोई स्वतंत्र ग्रन्थ तो अब तक नहीं मिला है, परन्तु कुछ ग्रन्थों में उनके कुछ पद्य मिले हैं । उनकी लक्ष्मीर्यास्यति गोविन्दे वीरश्रीवीरवेश्मनि । गते मुंजे यशःपुंजे निरालम्बा सरस्वती ॥ -प्रबन्धचिन्तामणि प्रीत्या योग्य इति प्रतापवसति: ख्यातेन मुंजाख्यया यः स्वे वाक्पतिराजभूमिपतिना राज्येऽभिषिक्तः स्वयम् ॥-तिलक-मंजरी ३ परमारनरेश अर्जुनवर्मदेवने अमरुशतककी रसिक-संजीविनी टीकामें २२ वें श्लोककी टीकामें यह कहकर एक पद्य उद्धृत किया है कि यह हमारे पूर्वज वाक्पतिराज अपरनाम मुंजका है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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