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________________ आचार्य अमितगति परमार राजाओंका जैन विद्वानोंके प्रति सद्भाव मालवेम विद्याप्रेमी और विद्वान् परमार-वंशके राजाओंके कालमें जो अनेक जैन विद्वान् हो गये हैं, उनमें आचार्य अमितगतिका एक विशेष स्थान है। इस वंशके राजा जैनधर्मके प्रति आदर-भाव रखते थे। प्रद्युम्नचरित काव्यके कर्त्ता आचार्य महासेन मुंजराजाद्वारा पूजित थे। इसी तरह महासेन महाराजा सिन्धुलके महामहत्तम ( महामात्य ) श्रीपर्पटके गुरु थे । न्यायकुमदचन्द्र और प्रमेयकमलमार्तण्डके कर्ता प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजदेवद्वारा सम्मानित थे । महाकवि धनपालने अपने प्रसिद्ध गद्य-काव्य 'तिलक-मंजरी' की रचना राजा भोजके कहनेसे की थी और राजा भोजने उन्हें अपनी सभामें 'सरस्वती' की पदवीसे सम्मानित किया था । दुबकुण्डके वि० सं० ११४५ के लेखके अनुसार जैनाचार्य शान्तिषेणने भोजदेवकी सभामें अम्बरसेन आदि जैन विद्वानोंका अपमान करनेवाले पण्डितोंको हराया था। इसी तरह भोजके वंशज अर्जुनदेवके सान्धिविग्रहिक मंत्री सलखण सम्भवतः पण्डित आशाधरके पिता थे और गुरु बालसरस्वती मदनोपाध्याय शिष्य थे। इससे पता लगता है कि उक्त सब राजाओंके कालमें जैन विद्वानोंकी काफी प्रतिष्ठा थी और उनका जैनधर्मके प्रति सद्भाव था। __ साहित्याचार्य पं० विश्वेश्वरनाथ रेउके कथनानुसार अमितगति वाक्पतिराज मुंजकी सभाके एक रत्न थे। वे बहुश्रुत विद्वान् थे और उन्होंने विविध विषयोंपर ग्रन्थ लिखे थे । उनके तमाम उपलब्ध ग्रन्थ संस्कृतमें हैं, प्राकृत या अपभ्रंशका अब तक कोई ग्रन्थ नहीं मिला है। __१-आसीत् श्रीमहसेनसूरिरनघः श्रीमुञ्जराजार्चितः । -प्रद्युम्नचरित। २ देखो जैनशिलालेखसंग्रहका लेख नं० ५५–श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताश्मररिमच्छटा ... श्रीमान्प्रभाचन्द्रमा । ३ देखो, ‘पण्डितवर आशाधर ' लेख ! पृ० १३२ ४ देखो, श्रीविश्वेश्वरनाथ रेउर्जाका राजा भोज ' ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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